एक माँ की दास्तान
A Mother’s tale
जब हम कँवलजीत से पहली बार मिले थे तो उसने अपनी बेटी मंजू की तस्वीर दिखाई थी। उस तस्वीर में वो सजी-धजी लड़की थी, मुस्कुरा रही थी। उस तस्वीर को अपने हाथ में लेते हुए उसने कहा, ‘फ़ोटो देखकर कोई कह सकता है कि वो अपनी एक किडनी खो चुकी है। और, उसके दूसरी किडनी में भी इंफेक्शन है, पर मंजू है कि आपको हमेशा हँसती ही मिलेगी।’
The first time I met Kanwarjeet, she showed me the picture of her daughter Manju. She was dressed up and beautiful. Kanwarjeet held the picture and said, “Looking at this picture, can anyone believe that she has lost one of her kidneys and the second one is infected? Manju always smiles, just like in this picture.”
उसने बताया कि उसके चार बच्चों में से मंजू दूसरे नंबर पर है। फिर वह उसकी बीमारी के बारे में बताने लगी, ‘पता नहीं इसे क्या हुआ, और रीढ़ की हड्डी में ही क्यों हुआ! इसके रीढ़ की हड्डी में दर्द रहने लगा था। जब इसने मुझे बताया तो मैंने इसे आस-पास के डॉक्टर को दिखाया, पर इसे आराम नहीं मिला। किसी ने कहा कि स्कूल में एक्सरसाइज़ करते समय झटका लग गया होगा, इसे किसी से मालिश करवाओ। लेकिन, मालिश करवाने से आराम की जगह दर्द बढ़ गया था। जो-जो जैसे बोलता वैसे-वैसे मैं करती जाती थी। कोई जख़्म नहीं, कोई चोट कहीं दिखाई नहीं पड़ता। कुछ दिन बाद इसकी रीढ़ की हड्डी अपनी जगह से मुड़ने लगी थी। मैंने इसको सफ़दरजंग में डॉक्टर को दिखाया। उन्होंने बस दवाइयाँ लिखीं और कहा, ‘ठीक हो जाएगी।’
Kanwarjeet recounted that Manju is the second of her four children. Since her marriage, Kanwarjeet has been living outside Delhi. “My life is like an open book. I have neither hidden nor suppressed any of its pages.” She told me how much young Manju has had to struggle with her health. “I don’t know what or how this happened to her. She was having a lot of pain in her spinal cord. When she told me about it we took her to the doctor in our neighborhood. But she got no relief. Someone said that she must have strained some muscle while doing yoga, so I should take her to a masseuse. Instead of relief, the massage only led to an increase in her pain. I did whatever people around asked me to do. There were no bruises or wounds. After a while, her spinal cord began to bend a little. I took her to the Safdarjung hospital. They just wrote out a prescription for some medicines and said she would be better soon.”
कँवलजीत तस्वीर को फिर ध्यान से देखने लगी। मानो उस तस्वीर के सहारे ही वो अपने अतीत में उतर रही हो।
She began looking at the photograph again, as if she was stepping through it into her old memories.
वह बोली, ‘एक साल हो गया। धीरे-धीरे मंजू की हालत ख़राब होती जा रही थी। वह कमर से एकदम झुक गई। उससे सीधा नहीं हुआ जा रहा था। उसे खड़े होने के लिए किसी की मदद लेनी पड़ती थी। उसी समय हमारे पड़ोस में एक क्रिश्चियन परिवार किराए पर रहने आए थे। उनकी बेटी मंजू की क्लास में पढ़ती थी। उसके पापा ने मंजू को देखा और मुझसे बोले, ‚हमारी एक जानने वाली हैं, जिनकी सफ़दरजंग अस्पताल में अच्छी जान-पहचान है। वो वहाँ काम भी कर चुकी हैं। आपको मैं उनसे मिलवा देता हूँ। उन्हें साथ लेकर जाओ। बस, उनका आने-जाने का किराया आप दे देना।’
Kanwarjeet said that within a year Manju began deteriorating. She was completely bent from her waist onwards. She couldn’t stand upright without support. “Around that time, a Christian family rented a house in our neighborhood. Their daughter was Manju’s classmate. Her father saw Manju and told me, “We know someone who knows someone well at the Safdarjung hospital. She herself has also worked there in the past. I will introduce you to her. Take her with you the next time you go to the hospital. Just pay for her travel.” I said that it would be great to be introduced to her and that I would manage the travel expenses.
मैंने तुरंत हामी भर दी। फिर मैं उस औरत के साथ मंजू को लेकर सफ़दरजंग अस्पताल गई। डॉक्टर ने उसका इलाज़ शुरू किया। मंजू का एक्स-रे और टेस्ट करवाया। छह महीने बेड रेस्ट में रहने को कहा। मेरी नज़र ज़रा-सी इधर-उधर हो जाती तो वह सहेलियों के साथ खेलने लग जाती। बच्चे भला कहाँ रुकते हैं! वैसे भी, वो चंचल स्वभाव की है। मंजू का दवा का पूरा कोर्स चला। वो दवाइयाँ इतनी असरदार थीं कि उससे रीढ़ की हड्डी तो ठीक हो गई पर उसका असर किडनी पर पड़ा। पता नहीं किस कारण रीढ़ की हड्डी में पस आने लगा था, जिससे किडनी में इंफेक्शन हो गया। डॉक्टरों का कहना था, ‘यह उन लोगों को किडनी ख़राब होने के बाद पता लगा।’
“It was then that I started going to the Safdarjung hospital along with that lady. The doctors there began Manju’s treatment. First Manju had an x-ray and some tests. They advised her to take bedrest for the next six months. Manju was so young then. If my attention shifted, then she would escape and start playing with other children. It’s difficult to keep children still and she was especially naughty. Manju went through an entire course of medication. We gave all the medication diligently. But the medicines were so strong that while the condition of her spinal cord improved, her kidneys were affected. Somehow there was pus in her spinal cord which led to an infection in her kidneys. The doctors realized this only once the kidney failed.”
कँवलजीत की आँखों में आँसू बहने लगे थे। रीढ़ की हड्डी में पस आने का कारण आज तक पता नहीं चला। फिर अफ़सोस के साथ बोलने लगी, ‘थोड़ी लापरवाही मुझसे भी हुई थी। मैं इसे मालिश करवाने अपने मामा के गाँव राजस्थान ले गई थी। वहाँ मालिश करने वाली ने मंजू को पेट के बल लिटा दिया था। उसने पीठ पर तेल लगाकर पाँच-छह बार गर्दन से कमर तक मूसल को घुमाया था। इससे मंजू की पीठ पूरी लाल हो गई थी। वो दर्द से छटपटाई । मैं तो माँ थी, यह सोचकर चुप रही कि बच्ची ठीक हो जाएगी। पर जब मालिश वाली ने कहा कि इसे हफ़्ते भर लगातार लेकर आओ तो मैंने अपने मामा को ऐसा करने से मना कर दिया था। मैंने उनसे कहा कि मैं दोबारा मंजू को लेकर नहीं आने वाली। अभी बच्ची है, कच्ची हड्डियाँ हैं। कहीं ऐसा न हो कि इसकी और हड्डियाँ टूट जाएँ। मेरे पति को पता था कि मैं इसे लेकर मालिश के लिए गई थी । अगर इसे कुछ और हो जाता तो फिर पूरी ज़िंदगी वो मेरे किसी फ़ैसले पर भरोसा नहीं करते। शायद उस मालिश से ही रीढ़ की हड्डी में जख़्म बन गया हो, जिसमें बाद में पस बनने लगा था।’
Kanwarjeet had tears in her eyes. She said that they never understood how the spinal cord got infected with pus. She felt that perhaps she had been negligent as a mother. “When I took Manju for a massage to my uncle’s village in Rajasthan, a masseuse made Manju lie on her belly, oiled her back and then used a club to pound it from neck to toe. Manju’s back turned red. She was writhing in pain. I am a mother, so I kept quiet, thinking that it would be good for my daughter. But when the masseuse asked me to bring her back for the whole week, I decided I wouldn’t do it. I told the masseuse that she is a child after all, with delicate bones. What if something breaks? My husband knew that I had brought Manju for a massage. If something bad happened to her, then he would never trust my judgement again. Perhaps that is what injured Manju’s spine after all.”
फ़ोन कॉल
Eavesdropping
इस बात को दोहराते हुए ऐसा लग रहा था जैसे वो पस पड़ने का कारण खुद को ही मान रही हो।
While telling me her story, it seemed as if Kanwarjeet was still seeking reasons for her daughter’s spine and kidney infections.
‘दो साल तक दवाइयाँ चलती रहीं। जब कभी दर्द होता तो डॉक्टर दवा लिख देते, मंजू वो खा लेती थी। पहले मंजू की रीढ़ की हड्डी में पस आने लगा। फिर किडनी की प्रॉब्लम शुरू हो गई। उसके पढ़ाई पर इसका बुरा असर पड़ा। मंजू ने बारहवीं पास की और कॉरसपोंडेंस से आगे की पढ़ाई शुरू कर दी। कभी-कभी मंजू कहती भी कि आज ज़्यादा थकावट है और पेट में हल्का दर्द भी। तब मैं उससे कह देती कि दो दिन आराम कर ले, ज़्यादा भागदौड़ मत किया कर। ऐसे कहते-कहते ही एक साल गुज़र गया। इस एक साल के बाद मंजू को कमर में दर्द और बुखार जल्दी-जल्दी होने लगा था। हम उसे कहते परहेज़ रख, कोई भारी चीज़ मत उठाया कर। हमें लगता था कि शायद उसे ये तकलीफ़ मौसम के बदलने से या ज़्यादा भागदौड़ की वजह से होती है।
Manju was on medication for two years. “Whenever Manju was in pain, the doctor would give pain killers. The spinal cord pain and her kidney infections affected her education. She somehow managed to pass high school and then did her college education through correspondence. She had also developed a chronic pain in her stomach and would get medication from the doctor for managing it. Sometimes Manju would complain of excessive exhaustion and stomach ache. I would tell her to rest for a few days and not to run around and work. I thought she was improving so much and that is how she saw herself as well. Another year passed by in this manner. But after this, the frequency of her back pain and stomach aches increased. We told her to be more careful and not lift heavy weight. We thought that her pain had increased because of a change in the weather or because she was working very hard.
एक दिन अचानक मंजू के पेट में तेज़ दर्द उठा। मैं मंजू को अस्पताल ले गई। वहाँ उसे इंजेक्शन दिया गया। उसके बाद दर्द कम नहीं हुआ तो सफ़दरजंग वालों ने सीधे एम्स रेफ़र कर दिया। वहाँ गई तो एम्स वालों ने रिपोर्ट देखी। कुछ नए टेस्ट करवाए। रिपोर्ट आने के बाद उन्होंने कहा कि इसके दोनों गुर्दे जा चुके हैं। उन्होंने बताया जब इसकी रीढ़ की हड्डी ठीक होने के लिए दवाइयाँ चल रही थीं तो पस और दवाइयों ने मिलकर इसकी किडनी को ख़राब कर दिया। शुरू में एक किडनी सूखकर मटर के दाने की तरह हो गई फिर दूसरे पर सारा भार आ जाने से वह बड़ी होने लगी।
One day, Manju suddenly had an excruciating pain in her stomach. Babli, Manju’s younger sister immediately rushed her to the Safdarjung hospital. The doctors there gave her an injection. But when the pain returned, Manju was referred to the All India Institute of Medical Sciences (AIIMS). The doctors there examined all her past reports. They did some further tests and said that both of Manju’s kidneys had collapsed and the spinal cord was infected and had pus. The medication given for the spine along with the pus collected in it had led to the infection and eventual collapse of the kidneys. One kidney had dried up to the size of a chickpea, while the other became enlarged because it had taken up the function of both kidneys, ultimately leading to a collapse.
किडनी ख़राब होने के बारे में जब डॉक्टर ने बताया तो हमें लगा कि अब सब कुछ ख़त्म हो गया। मंजू को जब ये बात मालूम हुई, तो वह भी घर आकर शांत बनी रही। मगर मैं एक माँ हूँ, यह सुनकर मुझे धक्का लगा पर मैंने दिल मज़बूत करके मंजू से कहा, ‘कोई बात नहीं बेटा, हम मिलकर इसका सामना करेंगे!’
When we heard from the doctors about the collapse of both kidneys, we felt as if everything was over. Manju also came home and retreated into silence. Babli was in tears. When Manju told me the reality of her health situation, as a mother I was devastated but I made my heart stronger and told her that we will meet this challenge together.
एक आवश्यक सूचना
Announcement
मैंने हिम्मत नहीं हारी। उसका हौसला बनाए रखने की कोशिश की। मुझे ये बात समझ में आ गई थी कि मंजू का अभी इलाज़ चलते रहना ज़रूरी है। उसका इलाज़ एम्स में होने लगा था। उससे डॉक्टरों ने कहा कि वह रुटीन में ज़्यादा बदलाव न करे। जैसे पहले रहती थी वैसे ही रहती रहे। सिर्फ़ खाने में परहेज़ रखना ज़रूरी था, और वज़न कम उठाना था। भाग-दौड़ भी कम ही करनी थी। मंजू को अंग्रेज़ी दवाइयों के साथ लोगों के कहने पर होम्योपैथी की दवा भी दी जाने लगी थी। पाँच साल तक ये दोनों इलाज़ साथ-साथ चलता रहा।
“I did not lose courage and instead tried to build her strength. I understood that it was important to continue with Manju’s treatment. Now her care has been taken over by AIIMS [a reputed government hospital]. They said that there was no need to make too many changes in Manju’s daily routines. She needed to be careful about her diet and not carry heavy weight and not run around much. Her physician Dr Mittal also stressed that Manju should continue leading a normal life along with her regular schedule. He treated her like his daughter. His father was a homeopathic doctor and Manju had also begun taking homeopathic medicines along with her ‘English’ (modern-evidence-based) medication. For the next five years, both these streams of medication continued. Manju began looking normal and it was difficult to say that she had such a major kidney disorder.”
कँवलजीत कभी तो मंजू की बात करते-करते रुआँसी-सी हो जाती तो कभी एकदम ठीक से बोलने लग जाती। इलाज़ के खर्च़े के बारे में वो बताने लगी, ‘भले ही एम्स में चेक-अप फ्री हो पर जो दवाइयाँ लिखी जाती थीं वो 1500-1600 रुपये महीना पड़ ही जाता था। किडनी की दवाई महँगी आती है। हम एक साथ तो 1500-1600 रुपये की दवा नहीं ख़रीद पाते थे। इसलिए हम दो दिन की दवा पहले ख़रीदते फिर अगले कुछ दिनों का पैसा जुगाड़ करते थे। इस तरह उसे महीने भर की दवा खिला पाते थे।
While speaking about Manju, Kanwarjeet would go through a whole gamut of emotions. She then began telling me about the expense she had gone through. Even though the treatment at AIIMS was free, she still had to spend up to 500- 600 rupees every month for medicines. “Medicines for kidney disorders are so expensive. We would buy medicines for a few days and then try and gather money for the next few days. This is how we managed to get medicines for her for the whole month.
एम्स के एक डॉक्टर ने यह समझाया कि आगे हमें किडनी ट्रांसप्लांट के लिए तैयार रहना होगा। इस पर हमारे परिवार में बातचीत भी हुई। डॉक्टर ने कहा था कि जब दूसरी किडनी पर असर और लगेगा कि वो ख़राब हो रही है तो किडनी ट्रांसप्लांट करना ज़रूरी होगा। हम जानते थे किडनी मिलना आसान नहीं होता, लाखों रुपये लग जाते हैं। लेकिन, हमारा पूरा परिवार मंजू को किडनी देने के लिए तैयार था। बेटा तो अड़ गया था कि मैं ही दूँगा। तब डॉक्टर ने कहा था कि हम ऐसे किडनी नहीं ले सकते, जब ज़रूरत पड़ेगी तभी ट्रांसप्लांट करना होगा, अभी तो बस दवा खाते रहो। तक़रीबन पाँच साल के इलाज़ के बाद, एक दिन अचानक मंजू को पेट में बहुत तेज़ दर्द हुआ, हम समझ गए थे कि किडनी का ही दर्द है। हम उसे एम्स लेकर भागे। फिर से सारे टेस्ट हुए तो पता चला कि एक किडनी तो पहले ही सिकुड़ गई थी और अब दूसरे में भी दिक़्क़त होने लगी है।
“A doctor once told us that we could consider a kidney transplant and we even discussed it within the family. We knew that it wasn’t easy to get a kidney for the transplant, that we would need lakhs of rupees for it. Our entire family was willing to donate a kidney to Manju. My son insisted that he wanted to be the one to donate his kidney. Our doctor then explained that this is not the way to transplant a kidney. We will do it only if it is necessary and at the right time. For now just keep taking your medicines. After about five years of this treatment, Manju suddenly had an acute stomach ache. We realized this was because of her kidneys. We rushed her to AIIMS. After many tests, we were told that one of her kidneys had already shrunk while the other had become extremely stressed.
2013 तक उसका इलाज़ एम्स में ही चला। मंजू का एम्स के इलाज़ के साथ-साथ अब इधर हम आयुर्वेदिक दवा भी करवा रहे थे। आयुर्वेदिक दवा तीन-चार हज़ार की आती थी। महीने भर के इलाज का ख़र्च चार-पाँच हज़ार होना तो तय था। एम्स की दवा भी हज़ार-डेढ़ हज़ार की आती थी।
“Manju was treated at AIIMS until 2013. We also did Ayurvedic treatment at the same time. The Ayurvedic medicines cost us between three to four thousand [per month]. We spent between a thousand to fifteen hundred for her AIIMS medication [each month]. So, in total, we spent four to five thousand on her medicines alone.”
दो घंटे बीत चुके थे। कँवलजीत को अपनी पोती को स्कूल से लाना था। वह अपनी नम आँखों को पोंछती हुई स्कूल की तरफ़ बढ़ गई।
We had spent nearly two hours chatting. It was time for Kanwaljeet to collect her granddaughter from school. She finally left, wiping her moist eyes.