रचनाकार

Contributors

The Ankur Collective@Zorba2003. Behind the scenes. Photo: Ankur Collective

अंकुर समूह

The Ankur Collective

अंकुर में लिखने की प्रणाली अनोखी है। शुरुआत मे, लेखक अक्सर अपनी लिखाई अपने बस्ती के अंकुर क्लब में पढ़कर सुनाते हैं। यहाँ उनके क्लब के बाकी सदस्य भरपूर तरीके से उस लेख की मीन मेख करते हैं। क्या कमज़ोरियाँ हैं, कौनसी बात जम रही और कौनसी नहीं इसे बेझिझक कहा जाता है। इस के बाद लेखक अपनी कहानी को बड़े ध्यान से दोबारा, तिबारा लिखतें हैं। इस प्रक्रिया के बाद लेख प्रभात या शर्मिला के पास, अंकुर के हेडऑफिस तक पहुँचता है, जो उन्हें पढ़ फिरसे पुख्ता करने की सलाह देतें हैं। एक कहानी लिखने के पीछे बोहोत लोगों के विचार और लेखक की अपनी आलोचनात्मक सोच जुडी होती है।

कई बार तो ऐसा भी होता है की बार बार लिखने की इस प्रक्रिया में इतने व्यक्तोयों ने योगदान दिया होता है कि किसी एक को श्रेय देना संभव ही नहीं होता। ऐसी परिस्थितियों में कहानी की रचना का श्रेय अंकुर कलेक्टिव को दिया गया है।

इसी तरह से कई फोटोस में भी खींचने वाले के नाम के स्थान पर कलेक्टिव को ही श्रेय दिया गया है।

The writing culture at Ankur is quite unique. The writers often begin their process by reading out their first draft writings at their local Ankur Clubs. Here, the other members thoroughly go through all the details of the story and express their feedback without hesitation. After this, the writer carefully writes and then rewrites their story. In the next phase, the story reaches Prabhat or Sharmila at the head office of Ankur, who read it and give their feedback and advice. Every story passes through stages of peer reviews and reviews by mentors and is finally built through the author’s ability to think and reflect critically.

Often times the process becomes so collaborative in nature that it is not possible to give credit to any one person. In such circumstances the authorship of a story is attributed to the Ankur Collective.

Similarly, in many photographs also, credit has been given to the collective.

Tehreen Bano
तहरीन बानो Tehreen Bano. Photo: N.N. © 2023 N.N.
अंकुर कलेक्टिव के सदस्य Member of the Ankur Collective
मेरा नाम तहरीन है। मैं अपने अड़ोस पड़ोस के लोगों के बारे मे कहानियाँ लिखती हूँ। यहाँ रहने वाले लोग तो ज़्यादा हैं, पर जगह कम। लिखने की शुरुवात तब हुई थी, जब मैं फोर्थ क्लास में थी, कुछ ९- १० साल की। मैंने अपने पड़ोस मे रहनेवाली हम उम्र, नंदनी की लिखी कहानी पढ़ी। लगा की कितनी लाजवाब कहानी है। क्या मै भी ऐसा लिख सकती हूँ? उस वक्त मैंने पहली बार मेरे ख्याल लिखें। एक मछली है और उसे पानी में ठंड लगती है। मछली को पानी में ठण्ड लग रही है? सुनते ही हँसी आजाती है! धीरे धीरे लिखने की आदत डाली, तो लगता है की निगाहों में और सोच में थोड़ा ठहराव आया है। अब तो लगता है की लिखना मेरे ज़िन्दगी का अटूट हिस्सा बन गया है, मेरा वजूद बन गया है।
Hello. My name is Tehreen. I write stories about my neighbourhood. There are many who here but space is less. I started writing when I was in class four, about 9 or 10 years old. I once read a story by Nandini, who was my age and lived next door. What a fanstastic story she had written. Can I also write like this? That was the first time I wrote about my thoughts and reflections. There is a fish who feels cold in water. A fish feels cold in water? That was so funny! Slowly I cultivated a habit to write. I soon realised that I am developing a calmness in my thinking and my perspective. Now I feel, writing has become an integral part of my life, my identity.
Sandhya
संध्या Sandhya. Photo: N.N. © 2023 N.N.

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

नमस्कार, मेरा नाम संध्या है। जब मै पहली बार अंकुर आई, तो मै उम्र की कच्ची और दिल और दिमाग से बच्ची थी। मुझे हमेशा से ही कुछ नया और हैटके करने का शौक है।  अंकुर में हमेशा कुछ नया बरक़रार रहा और इस लिए मेरी दिलचस्पी थमी रही। मैंने यहाँ दुनिया को एक नए नज़रिये से देखना सीखा और कहानी पढ़ने से लेकर, कहानी लिखने तक का सफर तय किया। हमारी लोकैलिटी, दक्षिण पूरी के बारे में लोग कहतें हैं कि यहाँ मर्डर, हेराफेरी और मार पीट होती है। मै चाहती हूँ के मेरे लेख के ज़रिये, लोग  इस जगह को एक नए तरह से जाने। जाने की यहाँ भी एक आम, रोज़ मर्रा की ज़िन्दगी बहती है। लोग रोज़ जद्दो जहद करते हैं, और यहाँ भी अच्छे लोग रहतें हैं।

Namaskar, my name is Sandhya. When I first came to Ankur, I was very young. I was always excited about doing new things and at Ankur, my interests were always engaged in exploring new and exciting things. At Ankur, I learnt to view the world from a new perspective and became a writer from being just a reader. People only know of my locality, Dakshinpuri, as a place where there are murders, street fights and foul play. I would like my writing to change this perception of people. I want them to see my locality as an ordinary place, where people live ordinary lives. A place inhabited by good people struggling to earn a livelihood against all odds.  

Meenakshi
मीनाक्षी Meenakshi. Photo: N.N. © 2023 N.N.

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

मै मिनाक्षी, तेरह साल की थी, जब मै अंकुर से जुड़ी। ये एक ऐसी जगह थी जहाँ स्कूल की पढ़ाई से परे कुछ सिखाया जाता है। जहाँ मुझे बाहर आकर बोलना तक नहीं आता था, वहां अंकुर आकर मैंने सबके सामने अपनी राय को रखना सीखा। जब मैंने वीडियो बनाना शुरू किया और कैमरा की आँख से अपने मोहल्ले को देखा, तो ये वैसी नहीं लगी जैसा लोग इसे कहते हैं। इसकी बारीकियॉ और मासूमियत, कमेरे की आंख से और खूबसूरत लगने लगी। जब हम कहानियां लिखते हैं, तो एक लेखक के साथ, सुनने वाले और एक श्रोता भी बनते हैं। हमने लोगो के डर की, दुख की और खुशियों की कहनियाँ सुनी। मैंने उन कहानियों को इस लिए शेयर किया ताकि और लोग भी उन्हें जाने, जिन्हे कोई नहीं जनता।

I am Meenakshi and I was thirteen when I first joined Ankur. This was a unique space where we were taught things beyond our school education. Earlier, I was scared to even speak in public but at Ankur I was taught to confidently share my own opinions with the world. Once I started making videos, I looked at my surroundings through the eye of the camera. Everything looked different from the way people described it usually. I could suddenly see every detail embellished with an inner innocence. When we write a story, then along with being a writer, we also become a reader and a visualiser. We saw stories capturing the fears, sorrows and joys of people. I share these stories so that the world may know those stories which no one knows.

Nandni Khushwaah
नंदा की ख़ुशी Nandni Khushwaah. Photo: N.N. © 2023 N.N.

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

कलम को अपना साथी बनाये मै निकल पड़ी हूँ एक ऐसे सफर पर जहाँ मुझे अपने नाम से पहचाना जाता है। मेरा नाम नंदिनी है। जब मै अंकुर में आई, तब मै पेंसिल से लिखा करती थी। पेंसिल से पेन तक का सफर मैंने हँसतेखेलते और यूँही कुछ सीखतेलिखते निकल दिया। लेखक होने के नाते मैं उन लोगों के बारे में लिखती हूँ जो अभावों में जी रहे हैं और अपना रोज़ी कमाने के लिए जद्दो जहद कर रहे हैं। यहाँ लोगों की आवाज़ें बंद दरवाज़ों के पीछे छुप जातीं हैं। हम उन्ही बंद दरवाज़ों को खोलते हैं और उन लव्ज़ और कहानियों को पन्नो पर उतारते हैं।

I have set out on a journey with a pen as my companion and with every step I take on this path, my name gets etched as a writer. My name is Nandini. When I first came to Ankur, I was very young and would write with a pencil. The journey from a pencil to a pen has been spent in fun and games, in learning and writing. As an author, I write about those people who live in poverty, who have to struggle to earn their daily wages. Here, the voices of people are stifled behind closed doors. We open these doors and set those words free on paper.

Nandni
नंदनी Nandni. Photo: N.N. © 2023 N.N.

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

जीवनी जल्द ही आने वाली है

Biography coming soon

Pappu Jadhav
पप्पू जाधव Pappu Jadhav. Photo: N.N. © 2023 N.N.

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

यह एक प्रकार का ब्लाइंड टेक्स्ट है. आप इसका उपयोग यह देखने के लिए कर सकते हैं कि क्या सभी अक्षर वहां हैं और वे कैसे दिखते हैं। कभी-कभी आप फ़ॉन्ट का परीक्षण करने के लिए हैमबर्गफोंट, राफगेंडक्स या हैंडग्लव्स जैसे शब्दों का उपयोग करते हैं। कभी-कभी ऐसे वाक्य जिनमें वर्णमाला के सभी अक्षर होते हैं – इन वाक्यों को „पेंग्राम“ कहा जाता है। यह बहुत प्रसिद्ध है: तेज़ भूरी लोमड़ी आलसी बूढ़े कुत्ते के ऊपर से कूद जाती है। तेज़ भूरी लोमड़ी आलसी बूढ़े कुत्ते के ऊपर से कूद जाती है।

This is a type blind text. You can use it to see if all the letters are there and what they look like. Sometimes you use words like Hamburgefonts, Rafgenduks or Handgloves to test fonts. Sometimes sentences that contain all the letters of the alphabet – these sentences are called „pangrams“. Very well known is this one: The quick brown fox jumps over the lazy old dog. The quick brown fox jumps over the lazy old dog.

Roshni Khatun
रशनी खान Roshni Khan. Photo: N.N. © 2023 N.N.

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

नमस्ते, मै रौशनी, करीब सातआठ साल पहले, अंकुर के इस लेखन की दुनिया मे आई। कहानी लिखने के लिए मै काफ़ी लोगों से मिली। मैंने उनके अनुभवों को जाना और उनको दर्ज किया। कोई कहानी यूँही नहीं बन जाती। काफी मुलाकातों के बाद लोग हमसे घुलते मिलते हैं। कहानी लिखने के बाद हम उसे समूह के बीच सुनाते हैं और जिससे कहानी सुनी, उसे भी सुनाते हैं। फिर जिस चीज़ की उसमे कमी हो उसे पूरी करते हैं। लोगों से बात करके लिखने से, हम अपने मोहल्ले के लोगों के और करीब आएं। उनके दुखों को साझा किया। ये सारी कहानियां हमारे मोहल्ले की हैं, जिन्हे कोई देखना, सुन्ना या जानना नहीं चाहता। मै इन कहानियों को बाँट कर, दुनिया को अपने मोहल्ले से रूबरू कराना चाहती हूँ। इन्ही कारणों के वजह से मै लेखन की दुनिया मे आज भी मौजूद हूँ।

Hello, I am Roshni and I entered Ankur’s wonderful world of writing, eight years ago. I met many people while writing my stories. I learnt from their experiences and recorded them. People share their stories with us only after we meet them multiple times and they feel comfortable with us. After writing our stories, we read them amongst our peer group and also to the people who tell us their stories. We then fill up the gaps based on the feedback we get. Through this process, we come closer to the people in our community and understand them better. By writing about our own neighbourhood, we share stories which nobody wants to hear or know. This is how the world will meet the people of my by lanes. This is why I write.

Sabiha Halima
साहिबा हलीमा Sahiba Halima. Photo: N.N. © 2023 N.N.

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

मेरा नाम सबीहा हलीमा है। मै अपनी बारवीं क्लास ख़तम करके, कॉलेज के सफर के लिए तैयार हूँ। मै एक शायरा हूँ। मै अपने बोहोत से जज़्बात शायरी के ज़रिये लिखती हूँ। मेरे बचपन में मुझे दो रुपैया मिलते थें, जिससे मै जुम्मा बाजार से चम्पक की किताब लाती थी। कहानियां पढ़ते पढ़ते, मेरा भी दिल करता की मै भी लिखूँ। जब अंकुर के बारे में सुना तो लगा कि कुआँ खुद चलकर प्यासे के पास आगया। इसी तरह अंकुर से मेरा सफर जुड़ा। अंकुर में मुझे महसूस हुआ, की मेरे अंदर अपनी बात रखने की हिम्मत आगयी है। जिन बातों को लोग मामूली समझ छोड़ देते हैं, उन बातों पर मै गौर-ओ-फ़िक्र करने लगी। एक ऐसी ज़िन्दगी, जो लोगों से छुपी है, उसे अपने ज़रिये पन्नो पर शनाख्त देने की कोशिश में हूँ। मेरे अब्बू जब छोटे थें, तो कहानी लिखना चाहतें थें, लेकिन लिख नहीं पाएं। अब जब मै लिखती हूँ, तो अब्बू मुझमे अपना आप तलाशतें हैं। बोहोत अच्छा लगता है।

My name is Sabiha Halima. I have finished my twelfth grade and am on the way to joining college. I am a poetess. I express my feelings through my poetry. When I was a child, I would get two rupees for pocket money, from which I would get Champak comics from the neighbouring Friday market. Reading these stories, I also developed a strong desire to write. When I first heard of Ankur, I felt as if a cool stream had walked up to the thirsty. This is how our paths joined. It was here that I discovered the courage to express myself. I started paying attention and reflecting upon those ordinary, everyday stories of people which are discarded as unimportant. Through my writing, I try to bring these stories to light. When my abbu (father) was young, he wanted to become a writer but could not. Now when I write, then abbu sees himself in me. I really love it.

Tanishka
तनिष्का Tanishka. Photo: N.N. © 2023 N.N.

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

जीवनी जल्द ही आने वाली है

Biography coming soon

Amar Singh
मेरे

अंकुर कलेक्टिव के सदस्य
Member of the Ankur Collective

मेरा नाम अमर है। मै दिल्ली मे रहता हूँ और मै अंकुर मे पिछले सात साल से लेखन और अन्य कलाओं का रियाज़ कर रहा हूँ। साथ मे मै दिल्ली विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन भी कर रहा हूँ। बचपन मे जब मै पढ़ने लिखने के लिए एक ट्यूशन ढूंढ रहा था, तब मेरा एक दोस्त मुझे अंकुर मे खींच लाया था। लेखन की दुनिया को समझने मे काफ़ी देर लगा पर इस दरमियाँ मै एक सजग पाठक, लेखक, श्रोता और वक्त के रूप मे उभरता चला गया। पहले जो मेरा हाथ सिर्फ किताबें उठाने के लिए ही उठते थें, अब उन्होंने शब्दों की बाग डोर पकड़ कर लिखना सीख लिया है। पहले मेरी ज़ुबाँ जो किसी के पूछने पर ही, अपना परिचय देती थी, अभी इसी ज़ुबाँ से मैं अपनी अभिव्यक्ति तमाम लोगों के साथ साझा कर सकता हूँ।

My name is Amar. I have been engaging with Ankur for the last seven years. It was here that I first learnt to write meaningfully. I have been practicing writing and other art forms ever since. Currently, I am pursuing my graduation from Delhi University. When I was a child, I was searching for tuition classes in my neighbourhood to help with my studies. That is when a friend brought me to Ankur. It took me a while to understand this world of writing. I slowly emerged as an attentive reader, then a listener and then an orator. Earlier I hid behind books. But now I enjoy the world of words and expressing myself through it. Earlier I would speak only when spoken with. But today, I share my words and experiences with all.

Nandni Haldar
नंदिनी हल्दर Nandni Haldar. Photo: N.N. © 2024 N.N.
अंकुर कलेक्टिव के सदस्य Member of the Ankur Collective
नमस्कार, मै नंदिनी हलदर, लिखने की दुनिया का एक छोटा सा हिस्सा हूँ। अंकुर मे, मैं पिछले आठ सालों से एक लेखक, एक वक्ता, एक श्रोता और एक आलोचक के रूप मे अपनी मौजूदगी को दर्ज करती आई हूँ। बहरहाल, एक अच्छा विद्यार्थी बनते हुए, एक अच्छे शिक्षक बनने की राह पर हूँ। अक्सर हमसे ये सवाल किया जाता है कि हम क्या लिखते हैं और क्यों लिखते हैं? हम लोगों से बात करके उनकी आम ज़िन्दगी को लिखते हैं। हम घरों के छत, कोना, आँगन को लिखतें हैं। हम लोगों से बात करके उनकी ज़ुबान को लिखतें हैं। उनकी ख़ुशी, उनकी घबराहट, उनकी बेचैनी, उनकी मुस्कराहट। हमारे सोचने के दायरे काल्पनिकता से वास्तविकता के खिड़की को खोलते हैं।
I am Nandini Haldar, a miniscule part of the universe of writers. I have marked my presence at Ankur as a writer, an orator, a reader and a critique, for the last eight years. Currently I am traversing the path as a good student on the way to becoming a good teacher. We are often asked, what we write about and why we write? We speak with common people and write about their everyday life. We write about homes, rooftops, courtyards and corners. We speak with people and write about their voice. Their joy, their trepidations, their smiles. The limits of our thinking, open the confines between reality and imagination.
Prof. Ursula Rao
प्रो. उर्सुला राओ Prof. Ursula Rao. Foto:

मेरा नाम उर्सुला राओ है। मै अंकुर के साथ साझेदारी मे किये गए ‚बेटिकट मुसाफ़िर‘ प्रोजेक्ट की निर्देशिका हूँ। अंकुर के साथ मेरा दस साल से अधिक का साथ रहा है। इस दौरान मैंने उनके काम करने के तरीकों को बड़े नज़दीकी से देखा और समझा है। उनकी टीम, आम लोगों को अपने अनुभव और सोच को जोड़ कर लिखना सिखाती है।

I am Ursula (Rao), the leader of the collaborative project ‘Ticketless travellers’ at Ankur. Over the course of more than ten years of working with Ankur, I have grown to appreciate the work of the Ankur team and their support for critical learning.

विभिन्न स्थानीय टीमों के साथ बैठक और काम करते हुए, मैं अनुसंधानकर्ताओं की प्रभावशाली सूक्ष्म टिप्पणियों, उनकी चर्चाओं की उदारता, लेखन अभ्यास के पैनेपन और अंतिम पाठों की चमक से बहुत प्रभावित हुई हूं।

In meeting and working with various local teams, I have been struck by the impressively nuanced observations of the research practitioners, the generosity of their discussions, the rigour of the writing practice and the brilliance of the final texts.

इस मल्टीमीडिया प्रकाशन में, हम इस संसाधन को साझा करना चाहते हैं ताकि अधिक से अधिक लोग इससे सीख सकें। सभी पाठ सहयोगी परियोजनाओं के माध्यम से तैयार किए गए हैं, जिन्हें हमने दिल्ली के शहरी समाज के हाशिये पर रहने वाले लोगों की वास्तविकताओं, संघर्षों, सरलता और खुशियों को बेहतर ढंग से समझने के लिए मिलकर शुरू किया है।

In this multimedia publication, we seek to share this resource so that more people can learn from it. All the texts have been produced through collaborative projects that we have undertaken together to better understand the realities, struggles, ingenuity and joys of people living on the margins of Delhi’s urban society.

 

Kavita Dasgupta
कविता दासगुप्ता Kavita Dasgupta. Photo:

मेरा नाम कविता दासगुप्ता है। मै इस वेबसाइट की संपादक और क्यूरेटर हूँ। मै, प्रो. उर्सुला राओ और अंकुर के इस अनूठे साझेदारी के साथ २०२२ मे जुड़ी। मैं एक विजुअल कलाकार हूं, जिसने कुछ बीस वर्षों से अधिक, भारत के आदिवासी समुदायों और शहरी गरीबों के साथ मिलकर काम किया है। जब मैने अंकुर द्वारा ट्रैन किये युवा लेखकों की कहानियों को पहली बार पढ़ा, तो मुझे उनकी प्रखर लेखन शैली और उनके अनुभवों के पैनेपन के बीच एक मधुर समन्वय दिखा। ‚बेटिकट मुसाफ़िर‘ को आपके सामने पेश करते वक्त, मैंने इस समन्वय का ख़ास ध्यान रखा है। मैंने लेखों की गहराई उभारने के लिए उनमे विशुअल परत जोड़े हैं और अंग्रेजी अनुवाद करते वक़्त लेखकों द्वारा इस्तेमाल की गई मूल हिन्दी भाषा की ऊर्जा को बरकरार रखने की कोशिश की है।

I am Kavita Dasgupta, the curator and editor of this website. My association with this collaboration between Prof. Ursula Rao and Ankur began in 2022. I am a visual artist who has worked very closely with indigenous communities and the urban poor in India for more than twenty years. When I studied the stories written by the working-class communities trained by Ankur, what struck me was the beautiful balance between raw experience and literary style of the writers. Through ‘Ticketless Travellers’, I have tried to mount this balance by adding visual variance, fine tuning texts, capturing the linguistic flare of the original Hindi language and maintaining the edgy elegance of the work of the young community research practitioners.

 

Prabhat K. Jha
प्रभात कुमार झा Prabhat K. Jha. Foto:
मेरा नाम प्रभात कु. झा है। मै एक शिक्षाविद, लेखक और संपादक हूँ और अंकुर के साथ लगभग तीस वर्षों से दिल्ली के परायत्त बस्तियों में काम कर रहा हूँ। मै ज़्यादातर बच्चों और युवा वर्ग के साथ काम करता हूँ। उनकी रचनात्मक काबिलियत से प्रेरित होकर, मैंने अलग अलग तरह के संसाधन निर्मित किए हैं। ये अंग्रेजी और हिंदी दोनों भाषाओँ में दिल्ली के कामगार वर्ग के इतिहास, अनुभवों और कहानियों को दर्ज करते हैं।
I am Prabhat K Jha, a pedagogue, writer and editor, working with the Ankur collective at Delhi’s precarious neighbourhoods for thirty years or so. Drawing on the creative energy of children and young adults I have built bilingual intellectual resources in a range of formats and registers from the histories, experiences and stories of everyday working-class lives.
‚बेटिकट मुसाफ़िर‘ नामक इस प्रोजेक्ट के लिया शर्मीला और मैंने मिलकर, कोऑर्डिनेटर्स की भूमिका अदा की है। हम हमारे युवा रिसर्चर्स और लेखकों के साथ नज़दीकी से काम करते हैं। फील्डवर्क के दौरान उनका मार्गदर्शन करते हैं, लिखते वक्त उनका हाथ पकड़ते हैं, और फिर उनके लेखों का संपादन करते हैं। हम साथ किये गए इस शोध को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखते हैं, जो समाज में किये गए जैविक शोध मे अनुशासन लाती है और इन लेखों को अलग अलग पाठक और श्रोताओं तक पहुंचती हैं।
As coordinators of the collaborative project ‘Ticketless Travellers’, Sharmila and I work closely with the young researchers. We have helped the young authors to conceptualise the project, guided their fieldwork and edited their texts. We view the collaborative research as a process that adds rigor to the organic research in their communities, and helps take their voices to wider audiences across contexts.
 
Sharmila Bhagat
शर्मिला भगत Sharmila Bhagat. Foto:

मेरा नाम शर्मीला भगत है।मै गत तीस वर्षों से प्रायोगिक शिक्षाशास्त्र से जुड़ी हुई हूँ। मैंने कई ऐसे संसाधन की संकल्पना और डिज़ाइन बनाये हैं, जो दिल्ली के कामगार इलाकों में रहनेवाले बच्चों और युवा वर्ग के काम आयें और उन्हें सशक्त बनाये। मेरी कोशिश रही है की उन्हें ज़्यादा से ज़्यादा मौके मिले की वो अपनी लिखाई, अनुभव और सोच को न सिर्फ अपनी बस्तियों मे बल्कि पूरी दुनिया के साथ साझा कर सके।

I, Sharmila Bhagat, have been engaged in experimental pedagogy for more than three decades. I have conceptualised and designed pedagogical interventions for empowering children, young people and communities in working class settlements of Delhi. I have facilitated the sharing of their creative works around their life and times in their communities and beyond.

‚बेटिकट मुसाफ़िर‘ नामक इस प्रोजेक्ट के लिया प्रभात और मैंने मिलकर, कोऑर्डिनेटर्स की भूमिका अदा की है। हम हमारे युवा रिसर्चर्स और लेखकों के साथ नज़दीकी से काम करते हैं। फील्डवर्क के दौरान उनका मार्गदर्शन करते हैं, लिखते वक्त उनका हाथ पकड़ते हैं, और फिर उनके लेखों का संपादन करते हैं। हम साथ किये गए इस शोध को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखते हैं, जो समाज में किये गए जैविक शोध मे अनुशासन लाती है और इन लेखों को अलग अलग पाठक और श्रोताओं तक पहुंचती हैं।

As coordinators of the collaborative project ‘Ticketless Travellers’, Prabhat and I work closely with the young researchers. We have helped the young authors to conceptualise the project, guided their fieldwork and edited their texts. We view the collaborative research as a process that adds rigor to the organic research in their communities, and helps take their voices to wider audiences across contexts.

 

Lakhmi
लख्मी Lakhmi. Photo:

दिल्ली में कई नौकरियाँ करने के बाद एसटीडी बूथ पर बैठकर मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की। सन् 2002 में अंकुर से मैं एक रियाज़कर्ता के तौर पर जुड़ा. मैं दक्षिणपुरी, दिल्ली में रहता हूँ। आज मैं अंकुर में हिन्दी ब्लॉग, सोशल मीडिया और नए उभरते रियाज़कर्ताओं को सुनता हूँ और उनके लेखों का संपादन करने और रियाज़ कराने का काम करता हूँ।

I worked at many places while I was growing up. Finally I found a job at an STD telephone booth from where you could place long distance calls for a price. While sitting at this booth, I finally found time to finish my studies. I joined Ankur in 2002 as a Research practitioner. I live in Dakshinpuri, Delhi. Now I train emerging Research practitioners from the community. I teach them to write, conduct research and also edit their work. I also maintain and write for Ankur’s blog and maintain it’s social media accounts.

 

Yajuvendra Nagar (Janu)
यजुवेंद्र नागर Yajuvendra Nagar (Janu). Photo:

मेरा नाम यजुवेंद्र नागर (जानू) है। अंकुर मे, मेरे लेखन और संवाद करने की शुरुआत सन् 2005 से शुरू हुई. 2006 में नंगलामांची के विस्थापन से लेकर सावदा घेवरा के पुनर्वास का गहन अध्ययन करते हुए दिल्ली के शहरीकरण को समझने की कोशिश की, साथ ही इन दोनों जगह के दस्तावेज़ों को भी समझा। लिखना जारी है. अंकुर क्लब का संवादक भी हूँ।

My name is Yajuvendra Nagar (Janu). I began writing and holding dialogues at Ankur from 2005. I conducted an indeapth study in 2006, when people from the working class settlements from Nangla Machi in Delhi where evicted and resettled at the perphery of Delhi in Savda, in order to understand urbanisation and its processes. I continue to write and alongside this I am incharge of communications at the Ankur club.

 

Jannik Bender
यानिक बेंडर  Jannik Bender. Photo:

मेरा नाम यानिक है। मैं योजना और कोआर्डिनेशन चरण की शुरुआत में ही कविता और उर्सुला की टीम में शामिल हुआ। जो कभी केवल एक सोच थी, उसे साकार होने में भाग लेते हुए, मेरा काम वेबसाइट के विकास और अवधारणा मे सहायता करना था। शुरू से ही सबसे दिलचस्प सवाल यह था, कि हम इन साहित्यिक कृतियों को उनकी विषय-वस्तु को बरकरार रखते हुए, ब्लॉग के माध्यम में कैसे बदल सकते हैं। इस प्रोजेकट के विषय मे मेरी समझ बनी जब 2002 मे मै एक वर्कशॉप के दौरान अंकुर के प्रभात, जानू और लखमी से मिला। डिजाइन, संपादन और रोजमर्रा की जिंदगी पर हुई बातचीत, मुझे हमेशा प्रेरित करेंगी। इस दौरान, मैंने पोलिटिकल साइंस और सोशल एंथ्रोपोलॉजी मे बैचलर डिग्री, मार्टिन लूथर विश्वविद्यालय, हाल्ले-विटेन्बर्ग से हासिल की। मैं हाल मे फ्रेडरिक शिलर विश्वविद्यालय, जेना से सोशल थिओरी मे अपनी मास्टर डिग्री की पढ़ाई कर रहा हूं।

I am Jannik. I joined Kavita and Ursula’s team right at the beginning of the planning and coordination phase. Participating in the realization of what was once only a great vision, my job was to support the development and conceptualization of the website. From the start, the most interesting question was how we could transform these works of literature into the medium of a blog while maintaining their content. A turning point in this regard was the meeting with Prabhat, Janu, and Lakhmi from Ankur in Halle in 2002. The many discussions we had about designs, edits, everyday life, and much more will always inspire me. During my time with the project, I earned my Bachelor’s degree in political science and social Anthropology Martin Luther University, Halle- Wittenberg. I am currently pursuing my master’s degree in Social Theory at the Friedrich Schiller University, Jena.