हमारे बारे में
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बेटिकट मुसाफ़िर की कहानी
The Story of Ticketless Travellers
2010 की शुरुआत में, प्रो. उर्सुला राव ने अंकुर नामक एक भारतीय संस्था के साथ साझेदारी की शुरुवात की। अंकुर सोसायटी फ़ॉर ऑल्टरनेटिव्ज़ इन एजुकेशन, दीर्घ सालों से दिल्ली के कामगार समाज के बच्चों तथा युवा वर्ग के साथ शिक्षा में विकल्प बनाने का काम कर रही है। काम के दौरान, उन्होंने इन बच्चों को अपने जीवन की परिस्थितियों पर गंभीरता से विचार करने और अपने अनुभवों के बारे में लिखने के लिए अनुप्रेरित किया और ट्रेनिंग भी दी। इस दौरान जो कहनियाँ लिखीं गई, उनसे अन्थ्रोपोलॉजिस्ट्स (मानववैज्ञानिक) को भी बोहोत कुछ सीखने को मिला। उन्होंने स्थानीय जीवन के बारे में ज्ञान और अंतर्दृष्टि मिली और स्थानीय लेखकों ने शोध और विश्लेषणात्मक कौशल सीखा। समय के साथ परियोजना विकसित हुई है। लेखकों की एक पुरानी पीढ़ी अब एक नए युवा वर्ग युवा को ट्रेन कर रही है, जो मल्टीमीडिया के साथ काम करने में भी रुचि रखते हैं। यह वेब जरनल इन्हीं धाराओं का संगम है।
लेखक
Beginning in 2010, Prof. Ursula Rao began working with Ankur, an Indian NGO dedicated to creating alternatives in education for marginalised communities. Ankur Society for Alternatives in Education, has been training working-class Delhi residents to critically reflect on their life circumstances and to write about their experiences. The stories written during this time benefits both anthropologists and local writers: the former gain insights into local life, and the latter learn research and analytical skills. The project has evolved over time. An older generation of writers now train younger ones, who are increasingly interested in working with multimedia. The idea of creating a web journal to showcase their work has emerged out of that practice.
लेखक दिल्ली के मजदूर वर्ग के इलाकों मे रहने वाले लो हैं। वे अपने जीवन और अपने शहर को आकार देने वाली प्रक्रियाओं पर लिखते हैं। उनमें से कई ने छह साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था और वे दस-पंद्रह साल से लिख रहे हैं। अपनी जीवन के परिस्थितियों के आधार पर, कई बच्चे अंकुर से जुड़े और फिर उसे छोड़ा भी। उनका जुड़ाव चाहे जैसा भी हो, लिखने की ये प्रक्रिया ना ही अंकुर समूह के लेखन को प्रभावित करती है वरण उनकी अपनी ज़िन्दगी पर भी एक गहरी छाप छोड़ती है। ये लेखक अपने शहर का आँखों देखा हाल दर्ज करते हैं। अपने अनुभवों को बयां करते हैं। लेकिन उनकी कहानियाँ महज वर्णन तक सीमित नहीं रहती। इन कहानियों का आधार शोध, आलोचनात्मक सोच और एक ठोस लिखने की प्रक्रिया है। ये लेख दिल्ली शहर और उसके कामगार वर्ग के रिश्ते पर पैनी टिपण्णी करती हैं। जैसा कि वे सटीक रूप से वर्णन करते हैं, श्रमिक शहर के पैर हैं; उनसे लिखने या बौद्धिक एजेंसी रखने की अपेक्षा नहीं की जाती है। इस हाल मे, लिखना, उनके लिए विद्रोह और उत्सव दोनो है।
मल्टीमीडिया
The Writers
The writers are from working-class neighbourhoods of Delhi. They document their lives and the processes which shape their city. Many of them started writing when they were as young as six and have been writing for ten to fifteen years. Over these years they have joined and left this collective, depending upon their life circumstances. But whatever the dynamics of the association, each one of them influences the collective writing, which in turn touches their lives in myriad ways. They write about what they see and experience in their negotiations with the city. However, their writing isn’t an ordinary recounting. Rather it is a well-researched, re- viewed, and reworked piece of work that provides a critical gaze on the city of Delhi and the place it accords its working class. As they aptly describe, workers are the feet of the city; they are not expected to write or have intellectual agency. In such a scenario, writing becomes both an act of protest and celebration of their lives and circumstances.
मल्टीमीडिया, दिल्ली के श्रमिक वर्ग के जीवन में एक गहन संवेदनात्मक सफर का अवसर देता है। दिल्ली के लेखकों द्वारा निर्मित, ये मीडिया मुख्यधारा की कहानी के प्रतिवाद के रूप में काम करता है, जिसमें उन्हें या तो अपराधी या गरीबी और गंदगी में रहने वाले पीड़ित के रूप में दिखाया जाता है। मीडिया के माध्यम से लेखक अपने जीवन के सुख-दुख, अपनी लड़ाइयाँ और हार- जीत को अभिव्यक्त करते हैं। मल्टीमीडिया फॉर्मेट होने के कारण हमारे लेखकों के अड़ोसी- पड़ोसी और बस्ती के बाकी लोगों तक भी उनकी कहानियाँ आसानी से पहुँच जाती हैं। मल्टीमीडिया वेबसाइट एक ऐसे लाउडस्पीकर की भूमिका अदा करती है, जिससे उनकी आवाज़ पूरी दुनिया तक पहुँच सके।
ज्ञान और आवाज़
Multimedia
The multimedia is a deep sensorial dive into the lives of the working-class communities. Created from the texts of the writers from Delhi, the media serves as a counterpoint to the mainstream narrative, which paints them as either criminals or victims living in poverty and squalor. Through media, the writers want to visualize and communicate their own lives’ joys, tribulations, struggles, and sorrows. The multimedia format gives access to their neigh- bourhood. The digitized world gives them a route to connect their communities to the city at large. The multimedia website serves as a collaborative bridge through which their voices are curated to the world.
‚बेटिकट मुसाफ़िर‘ अंततः ज्ञान की रचना के राह पर की गई साझेदारिओं की कहानी है। कौन हैं वो, जो ज्ञान की रचना करते हैं, किसका नजरिया मायने रखता है, किसकी आवाज़ आखिरकार सुनी जाती है ? मनोवैज्ञानिक और स्थानीय लेखकों में अंतर तो है। बुनयादी अंतर सिर्फ साझेदारी की प्रक्रिया से गायब तो नहीं हो जायेंगे। लेकिन ये वेबसाइट एक शुरुवात है, जिसके द्वारा स्थानीय लेखकों को एक ज़रिया मिला है जिससे वो अपनी जीवन, अपने शहर की कहानियाँ खुद अपने कलम और अपने आवाज़ में बयान करे। ये ज़रूरी तो नहीं की लेखक अपनी ज़िन्दगी में कुछ धुआँधार बदलाव ले आए। वो ‚बेटिकट‘ ज़रूर हैं लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की वो मुसाफ़िर नहीं है।
Knowledge and Voice
Ticketless Travellers is ultimately a journey to co-create knowledge. It asks important ethical questions about voice, authorship, perspective and critique. It acknowledges the gap between anthropologists and the local authors; structural differences will not be overcome through collaboration alone. Instead, the project sees collaboration as a starting point, not an end point. It sets out to help local writers find their own voices and produce their own knowledge of the conditions under which they live. These stories have local resonances, local audiences, and reflect local priorities. The writers do not necessarily radically transform their lives. They remain “ticketless”, but this doesn’t mean that they cannot travel.
संस्थाएँ शीर्षक
Institutions Headline
अंकुर सोसाइटी फॉर अल्टरनेटिव्ज़ इन एजुकेशन
Ankur Society for
Alternatives in Education
अंकुर तीन दशकों से अधिक समय से दिल्ली के हाशिये पर रहने वाले इलाकों में बच्चों, युवाओं और समुदायों के साथ प्रयोगात्मक शिक्षाशास्त्र के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। अंकुर शिक्षा के माध्यम से हाशिए पर रहने वाले लोगों को सशक्त बनाना चाहता है, ताकि वे अपने अनुभवों और सन्दर्भों पर विचार कर सकें और गरिमापूर्ण जीवन के लिए प्रयास कर सकें ।
For more than three decades, Ankur has been working in the field of experimental pedagogy, with children, young people, and communities in marginalised neighbourhoods of Delhi. Ankur seeks to empower the marginalised, through education, to reflect on their experiences and contexts, and strive for a life of dignity.
मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंथ्रोपोलॉजी
Max Planck Institute for
Social Anthropology
मैक्स प्लैंक इंस्टिट्यूट फॉर सोशल एंथ्रोपोलॉजी सामाजिक – सांस्कृतिक मानवविज्ञान में अनुसंधान के लिए दुनिया के अग्रणी केन्दों में से एक है । मैक्स प्लैंक इंस्टिट्यूट की सभी शोध परयोजनाओं में सामाजिक परिवर्तन का तुलनात्मक विश्लेषण आम बात है, यह मुख्य रूप से इस क्षेत्र में है कि इसके शोधकर्ता मानवशाश्त्रीय सिद्धांत में योगदान करते हैं, हालांकि कई कार्यक्रमों में महत्व और राजनीतिक सामयिकता भी लागू होती है । फील्डवर्क लगभग सभी परियोजनाओं का एक अनिवार्य हिस्सा है । सन्स्थान में तीन शैक्षणिक विभाग है : आर्थिक प्रयोग का मानवविज्ञान राजनीति और शासन का मानवविज्ञान कानून एवं मानव विज्ञान
The Max Planck Institute for Social Anthropology is one of the world’s leading centres for research in socio-cultural anthropology. Common to all research projects at the Max Planck Institute is the comparative analysis of social change; it is primarily in this domain that its researchers contribute to anthropological theory, though many programmes also have applied significance and political topicality. Fieldwork is an essential part of almost all projects. The Institute has three academic departments: Anthropology of Economic Experimentation, Anthropology of Politics and Governance, and Law & Anthropology.
लीपज़िग विश्वविद्यालय
Leipzig University
लिपजिग विश्वविद्यालय की स्थापना 1409 में हुई थी और जब शीर्ष श्रेणी के अनुसंधान और चिकत्सा विशेषज्ञता की बात आती है तो यह जर्मनी के अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक है। यह मानविकी और सामाजिक विज्ञान से लेकर प्राकृतिक और जीवन विज्ञान तक विषयों की एक अनूठी विविधता प्रदान करता है ।
Leipzig University was founded in 1409 and is one of Germany’s leading universities when it comes to top-class research and medical expertise. It offers a unique variety of subjects, from the humanities and social sciences to the natural and life sciences.
जर्मन रिसर्च फाउंडेशन
German Research Foundation
डॉयचे फ़ोर्सचुंग्सगेमिंसचाफ्ट (DFG, जर्मन रिसर्च फाउंडेशन) जर्मनी में केंद्रीय स्वशासी अनुसंधान निधि संगठन है। डीएफजी विज्ञान और मानविकी की सेवा करता है और विश्वविद्यालयों और गैर –विश्वविद्यालय अनुसंधान संस्थानों में अपने सभी रूपों और विषयों में उच्चतम गुणवत्ता के अनुसंधान को बढ़ावा देता है । ज्ञान – संचालित अनुसंधान के क्षेत्र में अकादमिक समुदाय द्वारा विकसित परियोजनाओं के वित्तपोषण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
The Deutsche Forschungsgemeinschaft (DFG, German Research Foundation) is the central self-governing research funding organisation in Germany. The DFG serves the sciences and humanities and promotes research of the highest quality in all its forms and disciplines at universities and non-university research institutions. The focus is on funding projects developed by the academic community itself in the area of knowledge-driven research.