Sweeping my home @Savda. Photo: Kavita Dasgupta

घरों के भीतर

Inside Homes

दिल्ली के कामगार इलाकों के घर अकसर छोटे छोटे होते हैं। खिड़कियां कम और धुंधलका ज़्यादा। लेकिन लोग इस बीच बड़ी सूझ- बूझ से अपने जीवन को समेट और सहेज कर रखते हैं। इसी प्रकार जनम, जीवन और मौत का पहिया लगातार घूमता रहता है।

Homes in Delhi’s working-class areas are often small. Few windows and deeper shadows. Amidst this, people have arranged their lives with great skill and care. This is how the cycle life rotates between birth and death.

Medicine box in a home. Photo: Ankur Writers Collective

दवाई का डिब्बा

Medicine Box

घर में दवाइयों को कहाँ रखा जाये? क्या पन्नी में रखकर खूटी से टाँग दें, या यूँ ही जहाँ-तहाँ बिखेर कर रखे? या की बड़े जतन से डिब्बे मे बंद, किसी स्थायी जगह सूझ-बुझ के साथ रखें? आइये जाने की रुपहली पत्तियों में बंद, ये सफ़ेद, लाल, पीली गोलियां, हमारे घर और जीवन में कहाँ और कैसे सजती हैं।

Where should we keep medicines in our home? Do we put them in a plastic bag and hang it from a peg or just spread them out here and there and everywhere? Or do we organise them in a box and place them strategically in the correct corner. Come let us explore stories of where and how we place these silver-encased red, yellow and white pills in our homes and in our lives?

The Blue Window

पापा की सारी दवाइयां मैंने जानबूझकर खिड़की पर रखी है, कल्पना ने पलंग से उतारते हुए माँ से ये बात की। माँ अभी तक पापा के पलंग पर ही बैठी है। पापा की सारी दवाइयाँ प्लास्टिक के एक हाथ भर जितने डब्बे मे डालकर खिरकी से बिलकुल सटकर रखी हुई है। साथ ही गैस का चूरन और कुछ और शीशियाँ, उस जगह जहाँ सारि दवाइयाँ रखी हैं, वहाँ शोभा देती हैं। खिड़की चार गज की दूरी पर पलंग के बिलकुल सीध में है ताकी आँख खुलते ही पहली नज़र धुप की किरण के साथ सीधा दवाइयों पर जाए। भाई से बड़ी ही मिन्नतें करवाकर, कल्पना ने खिड़की का रंग भी नीला करवाया था, ताकि उस जगह पापा का आकर्षण बना रहे। माँ कभी कभी नाराज़ हो जाती है। ये हमारे घर की इकलौती, नन्ही सी खिड़की है। जब मम्मी कमरे के दूसरे कोने में खाना बनती है तो चारो ओर धुआँ धुआँ हो जाता है। इसलिए मैंने खिड़की को आधा खुला छोड़ा है। अब पापा और मम्मी दोनो खुश!

Kalpana told her mother that she had purposefully kept all Papa’s medicines on the window sill. Mummy is still lying around in Papa’s bed. All his medicines and most importantly the bottle of powder for Papa’s belly gas, have been organised with great care on the window sill. The window sill, just a few feet away from the bed, is straight in the line of vision. As soon as Papa opens his eyes in the morning, along with the first golden rays of the sun, he would be able to see all his medicines arrayed beautifully in front of him. I even begged my brother to paint the window a bright blue, so that Papa’s eyes are drawn straight towards it. In the night when Papa lies down on his bed after a hard day’s work, then again, his eyes will rest on his medicines. I have made a silent, but attractive reminder, so that Papa never forgets his medicines. Mamma though sometimes cribs a little about it. This is the only little window of our home and when she cooks in the other corner of the room, it often fills up with smoke and gets stuffy. So for mummy, I have organised things in a way so that one half of the window can be opened. This way both Papa and mummy are happy!

The Decorated shelf

कुछ दिन पहले ही पूजा मचान को सजाने के लिए एक कागज़ की शीट लाई थी जिस पर रंग बिरंगे फूल छपे थें। मचान सजाने का मक़सद उसे अपने इस्तमाल में लाना था। कप का सेट जो स्पेशल मेहमानों के लिए था, उनको एक के ऊपर एक रखकर उसने लोगो के लिए आकर्षण का केंद्र बनाया। कप की इस ईमारत को घेरती हुई, उसके छोटे बच्चे शिवम की दवाइयां और पाउडर थी। घर के सदस्यों के आधार कार्ड जो पहले अस्त व्यस्त घर के किसी कोने में रखे रहते थें, उन्हें सहेज कर उसने एक कांच की शीट उस मचान पर रख दिया था। घर के नन्हे शैतान से दूर खुले पैसे, प्लास्टिक के पंछी, पीले गुलाब, एक आईना, मेक उप का सामान और बटुआ भी रखा था। एक माँ और उसके नवजात बच्चे के ज़रूरतों को यह मचान बखूबी दर्शा रहा था।

A few days ago, Puja got a sheet of paper with colourful flowers to decorate this shelf. The reason for decorating this shelf was to finally put it to use. It was no longer just an ordinary corner of her house. The cups kept away in the kitchen for special guests, had been neatly arranged to create a focal point for visitors. Surrounding this little tower of cups were Puja’s little son, Shivam’s medicine bottles and powders. Puja has also collected all the adhar cards of her family members, which were otherwise strewn around the house and neatly pressed them under a glass sheet. Spare change, colourful plastic birds, yellow roses, a mirror, makeup and Puja’s purse had all been kept neatly on the shelf. It was as if Puja had built an alter for the bond between a mother and her new born son.

A Rack full of Medicines

सोनिया का घर ऐसा है कि चार लोग वहाँ खड़े हो जाएँ तो जगह बचती ही नहीं। फिर भी नए सामान के लिए जबरदस्ती जगह बनानी पड़ती है। घर की बाईं दीवार पर बने अलमीरा पर एक मिक्सर और एक छोटा रैक रखा हुआ है। रैक के पीछे लगे धुँधले शीशे में घर बिखरा हुआ दिखता है और डिब्बे उलटे-पुलटे। अलमीरा के क़रीब दीवार पर टँगा सोनिया का मास्क मानो इशारा कर रहा हो कि कोरोना गया नहीं है।

The medicines also have their very own requirements! Some have to be taken on an empty stomach and some after food. The prescription also seems to be getting lost constantly. Soniya has made the prescription six times already.

लगता है कि आज फिर सोनिया रौनक की दवाई रखकर भूल गई। सोनिया ये दवाई अपने बच्चे रौनक के लिए डिस्पेंसरी से लाई है जिसमें से एक सिरप बार-बार आ रही मितली को रोकने के लिए है। उसकी दवाई क़रीब पिछले दो महीनों से चल रही है। रौनक दो साल का छोटा बच्चा है। रिश्तेदारों ने कई बार मना किया कि छोटे बच्चे को सरकारी दवाइयाँ मत खिलाओ, एक तो असर नहीं करती ऊपर से उल्टा असर कर जाएँ तो पता नहीं क्या हो! लेकिन पैसों की क़िल्लत की वजह से सोनिया का डिस्पेंसरी से दवा लाना मज़बूरी है।

She has got the prescription made and then lost them herself, by mistake. She has spent thirty Rupees to get these prescriptions. Nowadays they charge five rupees at the dispensary for a prescription.

दवाइयों की बात करें तो इनके भी ग़ज़ब के नखरे हैं भाई! किसी को खाली पेट लो तो किसी को खाना खा कर लो। दवाइयों का रखा पर्चा अक्सर घर में गुम हो जाता है…, सोनिया ने ये पर्ची कई बार बनवाई है.. और यह छठी पर्ची है। उसने कितनी पर्ची अपने हाथों से बनवाई भी और धोखे में फेंकी भी। उसके तीस रुपये की चिल्लर तो इन्हीं पर्चियों में खर्च हो गए। आजकल डिस्पेंसरी में पाँच रुपये की एक पर्ची बनती है तब जाकर आगे की दवा मिलती है। पाँच पर्चियाँ खोने के बाद सोनिया ने शुक्रबाज़ार से ये प्लास्टिक का रैक सस्ते दामों में ख़रीदा । पर्ची के साथ-साथ रौनक की रोज़ाना की दवाइयाँ भी इसी प्लास्टिक के रैक पर रखी जाती है।

After losing 5 prescriptions, Soniya bought this cheap plastic rack from the Friday market. Now Raunak’s daily medicines and prescriptions have all been kept in one place on this rack.

वैसे तो बच्चा किसी भी चीज़ को पकड़ ले तो वह उसके लिए खिलौना बन जाती है। लेकिन, रौनक का विशेष खिलौना तो उसकी दवाइयों की प्लास्टिक की शीशी ही है। वो उन्हें अपने हाथों में जकड़कर धप्प से ज़मीन पर दे मारता है और तालियाँ बजाता है। उसे यह करके सच में मज़ा आता है या दवाइयों के लिए यह उसकी नफरत है ये तो सिर्फ़ वही जाने। लेकिन ऐसे ही उसने एक बार काँच की शीशी भी ज़मीन पर दे मारी थी, फिर क्या था पूरे घर में काँच ही काँच फैल गया था।

Usually, children have the ability to turn almost everything into a plaything. But for Raunak, the plastic medicine bottle is his special toy. He loves banging the bottle on the ground and claps his hands in delight. Only he knows, if he really enjoys this or if he takes out his anger on the bottle of medicine by banging it.

अब ये दवाइयाँ उस चुलबुले बच्चे की नज़र से काफी दूर इस रैक पर रख दी जाती है।

The medicines have now been kept securely on the rack, far from the eyes of naughty Raunak.

Medicines in a Temple

घर की चौखट की दाईं तरफ मंदिर है। मंदिर के ऊपर काफ़ी पुरानी बंद पड़ी टीवी रखी हुई है। टीवी से जुड़े सेट्अप-बॉक्स के ऊपर रखे डिब्बे में से केवल गोलियों के पत्ते झाँक रहे हैं। रिया की मम्मी को दवाइयों के नाम कम और उनके असर ज़्यादा पता है। इसलिए मुमकिन नहीं है कि दवाई के पत्ते इधर-उधर हो जाएँ । मंदिर के ऊपर दवाइयाँ रखने का मतलब ये भी है भाई! दवाई के साथ-साथ दुआ भी तो ज़रूरी है। उसका घर हवादार नहीं है, इसलिए दवाइयों की गंध मुसलसल उठती रहती है। खैर, अब तो रिया के परिवार को इस गंध की आदत हो गई है लेकिन बाहर से आनेवाले लोग कहते हैं कि क्या अस्पताल बना रखा है अपने घर को।

The temple is on the right side to the entrance of the house. On top of the temple stands an old television which has long stopped working. Strips of medicines peek out from the medicine box lying on top of the TV. Ria’s mother often forgets the names of all the medicines but always remembers what ailments they are for. So, they can’t afford to misplace any of the strips. That is why they have been kept with such care on top of the temple. Medicines become more effective when accompanied with prayers. The smell of medicines often floats through their home which lacks ventilation and open windows. Ria’s family is now used to this smell, but visitors often say how their home has become a hospital.

यह दवाइयाँ रिया की हैं, इनमें से कई गोलियाँ चढ़ते-उतरते बुखार की है । वैसे तो रिया को हमेशा बुखार नहीं रहता लेकिन मौसम कई बार उसे अपने चपेट में ले लेता है। ख़ासकर उसके लिए ही घर में फर्स्ट ऐड बॉक्स बना है। उसके शरीर के लिए विटामिन की कई गोलियाँ भी रखी हुई हैं।

These medicines belong to Ria and many of them are for the rise and fall of her temperature. Usually, she doesn’t always get a fever but with the changing weather, it often takes hold of her. The first aid box is specially for her and is filled with different medicines and vitamins.

शुरुआत में तो दवाइयाँ मोहल्ले के झोलाछाप डॉक्टर से ख़रीद ली जाती थी लेकिन अब दवाइयाँ मोहल्ला क्लीनिक से आती हैं। मोहल्ला क्लीनिक में जाकर इसी ख़ाली पत्ते को दिखाकर वह दवाई लाती है।

When she began falling ill, they would take Riya to the local jhola chhap doctor (quack) in their neighbourhood. But now they visit the local mohalla clinic and get medicines from there. Once the medicines are over, they visit the clinic with an empty strip for a renewal.

रीमा, रिया की मम्मी, सुबह-शाम जब पूजा करने बैठती है तो उसे हवा में लहराती बजती घंटी की टनटन से याद आ जाता है कि रिया को दवाई देनी है। वह घंटी मंदिर के लिए कम और दवाई की याद दिलाने के लिए ज़्यादा रहती है।

Morning and evening, Reema, Riya’s mother, would sit down for her prayers. Along with the tinkling of her prayer bells, she would remember that she had to give medicines to Riya.

Granny’s medicines atop the TV

दादी को हमेशा से बाहर की ताज़ी हवा पसंद है। इसलिए उन्होंने अपने रहने के लिए छत वाला कमरा ही चुना। वह एक टीन वाले छोटे से कमरे रहती हैं। उनकी छोटी सी खाट, पुराने समय का बड़ा-सा टीवी और एक कूलर उस कमरे में ही है। उनके कमरे में कोई दरवाज़ा नहीं है। वह आगे से खुला है।

My grandmother loves the feel of a cool breeze. That is why she has selected the room on the roof for herself. Her room is small and made with tin sheets. She has a small bed along with a big, old-style TV and a water-based air cooler. Her room doesn’t have a door and is open from one side.

दादी उस कमरे में अकेली ही रहती हैं, और घर के बाकी लोग नीचे वाले कमरे में रहते हैं। दादी की देख-भाल की ज़िम्मेदारी उनकी पोती महक की है – जैसे उन्हें खाना देना, समय से दवाई देना और उनका ध्यान रखना। लेकिन सुबह के सात बजे से दोपहर के बारह बजे तक महक स्कूल जाती है। ऐसे में वो दादी को समय से दवाई कैसे दे पाती? इसलिए महक ने दादी की दवाइयाँ टीवी के सामने ही रख दी है।

Granny lives alone in that room. The rest of the family lives in the room downstairs. Mehak, her granddaughter is responsible for caring for her. Mehak brings all her meals, gives her medicines on time and looks after her. However, from seven to twelve during the day she is in school. So, she has kept all of Granny’s medicines near the TV so that she doesn’t miss any during Mehak’s school hours.

कोई भी सीढ़ियों से ऊपर आए तो सबसे पहले उसकी नज़र टीवी पर ही पड़ती है। टीवी के सामने ही दादी की खाट भी बिछी है। दादी टीवी भी ज़्यादा देखती हैं। उनकी नज़र दवाइयों पर ही पड़े और वह समय से दवाइयाँ खा लें, यही सोचकर महक ने दवाइयों को सामने ही रखा है ।

Whenever someone climbs up the stairs, they are first drawn to the big TV in the room. Granny also loves watching TV and her bed is also kept right in front of it. It’s acts as a good reminder for her and all the rest in the house. That is why Mehak has organized all Granny’s medicines in front of the TV.

दादी अपनी सारी दवाइयाँ खुद ही मोहल्ला क्लीनिक से लाती हैं। दादी ही क्या उनकी गली की सभी बुजुर्ग औरतें मिलकर वहीं चली जाती हैं और अपनी ज़रूरत की दवाई ले आती हैं। दादी को तो मोहल्ला क्लीनिक बोलना ही नहीं आता वो उसे ‘टोपी वाले’ की डिस्पेंसरी कहती हैं।

Granny gets all her medicines from the mohalla clinic. Not just Granny, but all other older women in her lane go to the clinic together and get their medicines and meet the doctor. Granny doesn’t even know how to pronounce the word, ‘mohalla clinic.’ She calls it “topiwala clinic.”

Medicines next to the Waterpot

संजय कैंप में बना छोटा सा 6 x 6 का घर । दरवाज़े से सटकर बनी हुई चौकोर खिड़की । इसी खिड़की से रोज सूरज की किरणें आकर सुबह होने का ऐलान करती हैं। सुबह से दोपहर तक तो कमरे में लाइट की ज़रूरत ही नहीं पड़ती । ऐसे तो कमरे में ज़्यादा सामान दिखाई नहीं पड़ता पर चारों तरफ़ लगे पर्दे यह बताते हैं कि ज़रूरत का आधे से ज़्यादा सामान तो छिपाकर रखा गया है । उसी कमरे में और सामान रखने की जगह बनाने के लिए रुकैया ने अपने शौहर असलम से ज़िद करके काँच की स्लैब खिड़की के साथ लगवा दी है ।

A small six by six feet home in Sanjay camp. The square window is built as if it was stuck to the door. Sunlight enters through this window into the home and declares the beginning of a new day. From morning to afternoon, this home doesn’t need any other light. The room seems quite bare, but all the surrounding curtains seem to hide a world behind them. Rukaiyya has pushed and cajoled her husband Aslam, to build a glass shelf under the window. She keeps many little household tidbits on it.

घर में दवाइयों की गंध इस तरह फैली हुई हैं कि लगता है किसी ने ख़ास तासीर की इत्र छिड़क दी हो।

The smell of medicines envelope the whole room. As if someone has spread a unique fragrance in it.

स्लैब को बच्चों की पहुँच से दूर ऊँचा लगवाया गया है। यहीं पर रुकैया के बच्चे की दवाइयाँ भी रखी हुई हैं । रुकैया को यह डर रहता है कि उसके छोटे बच्चे सिरप की बोतल को पेप्सी समझ कर पी ना लें । दवाई आँखों के सामने ही रहे, बाकी सामान की तरह पर्दे में छिप ना जाएँ इसलिए दवाइयों की नई जगह इसे ही तय कर दी गई है ।

The shelf has been built high up in the wall, away from the reach of the children. Rukaiyya has kept some of her child’s medicines on this glass shelf. She is scared that her children might gulp down the bottle of medical syrup mistaking it for Pepsi. Medicines, she feels, should remain in front of her eyes so that they can be had on time, rather than being hidden behind curtains. That is why Rukaiyya has kept them on this glass shelf.

इसी स्लैब पर तीन प्लास्टिक के डिब्बे ना जाने कितनी एक्सपायर हो चुकी दवाइयाँ और उसके ख़ाली रैपर रखे हुए हैं । नई दवाइयों का डिब्बा अलग है । जिसमें ज़्यादातर दवाइयाँ असलम की हैं। असलम को क़रीब दो सालों से दमा की बीमारी है। दवाइयाँ खाने के बाद अब साँस लेते समय सीटी जैसी आवाज़ कम सुनाई पड़ती है । अब असलम दवाई लेने के आदी हो चुके हैं। उन्हें पानी मिल जाए तो दवाई ढूँढ़ना ना पड़े और दवाई मिल जाए तो पानी। इसलिए रुकैया ने स्लैब के ठीक नीचे घड़े में पानी भरकर रख दिया है। तब से उन्होंने खुद ही दवाई लेना शुरू कर दिया है। असलम हर सुबह और रात को जब रैपर से दवाई निकालते हैं तो उसकी आवाज़ सुनकर लगता है कोई मूँगफली फोड़ रहा है, पूरे घर को इससे पता चल जाता है कि असलम दवा खा रहे हैं या नहीं।

There are three plastic boxes filled with medicines, out of which many have expired and lie nestled with empty strips of pills. The box of new medicines is kept separately. Most of these medicines are for Aslam. Aslam has been diagnosed with Asthma for these past two years. Since he has started taking his medicines, his breathing sounds less like a whistle. Now Aslam has become used to taking his medicines. When he reaches out for the medicines, he may find water with ease or along with the water, he may find his medicines. That is why Rukaiyya has kept the waterpot strategically below the shelf. Since then, Aslam has started taking his medicines himself, without prompting from Rukaiyya. Whenever Aslam pops out a pill from its strip, it sounds like a peanut being cracked open from its shell. Everyone at home gets to know by that sound that Aslam has taken his medicines.

Medicines on the Fridge

जून के आख़िर में रविन्द्र का ऑपरेशन होने वाला था, लेकिन पीलिया हो जाने की वजह से ऑपरेशन कैंसिल हो गया। अब रविन्द्र का मेन प्रॉब्लम हर्निया है जो अब उन्हें काफ़ी परेशानी दे रहा है । अब वो ना तो ज़्यादा वजन उठा सकते हैं, ना देर तक खड़े रह सकते हैं और ना ही ज़्यादा खा सकते हैं ।

Ravinder was scheduled to have a surgery by the end of June. However, it had to be postponed because he came down with Jaundice. The surgery was for hernia which has been troubling him a lot. He has to be careful now as he can’t carry weight, isn’t able to stand for long and has to take his meals on time.

आह… माँ… वह थकी मुद्रा में बिस्तर पर लेटे हुए हैं। आज वो दफ़्तर भी नहीं गए, सुबह से ही दर्द में हैं ।

Aah.. Ma… he was lying in bed, exhausted! He hasn’t gone to work today and has been in pain since morning.

उन्होंने दरवाज़े के सामने वाली दीवार से सटे हुए फ्रिज़ के ऊपर रखी दो गोलियाँ ‘चिट, चिट’ कर निकाली और ‘गट-गट’ कर पानी से गले के नीचे उतार ली।

He took out two pills, ‘chit chit’ from the strip of medicines and ‘gat gat’ gulped them down with water.

फ्रिज़ पर दवाई के अलावा भी काफी समान रखा हुआ है। वह पहुँच में रहे इसलिए वहाँ रखा गया है। वे पर्स को काम से आते ही वहाँ रख देते हैं । वहीं पर फ़ोन और पत्नी का श्रृंगार-प्रसाधन का डिब्बा भी रखा रहता है । घर में ना कोई तख्ता है और ना ही अलमारी, सिर्फ़ एक फ्रिज़। दोनों तरफ़ पलंग है, उसमें एक छोटा और एक बड़ा है। एक पत्थर के स्लैब को जोड़कर उसपर किचेन बना दिया गया है।

There are many other things kept on top of the refrigerator. They are kept there so they are in easy reach. As soon as he came into the house, he would keep his wallet there as well. His cellphone along with his wife’s makeup and beauty stuff would also be kept there. There are no cupboards or shelves in the house, other than this fridge top. There are two beds on two sides of the house. One big and one small. A stone slab has been built to create a kitchen.

‘आप ठीक तो हैं?’ पत्नी ने पूछा।

“Are you feeling, okay?” wife asked.

‘हाँ! बस आराम करने दो।’ आह… माँ… लेटते हुए उन्होंने अपनी पसलियाँ पकड़ लीं।

“Yes. Let me rest for a while.” Ah… Ma… he held onto his ribs while lying down.

एक साल से लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल से वे दवा ले रहे हैं । उन्होंने कभी देसी दवा या प्राइवेट अस्पताल में इलाज़ नहीं करवाया ।

He has been getting treated at Lal Bahadur Shastri hospital for a year now. He has never been to a private doctor or got any of alternative medicine.

‘अच्छा ज़रा पानी ले आना।’ कहते हुए रविन्द्र पलंग पर उठकर बैठ गए । रात के क़रीब आठ बज चुके थे । अँधेरे में ट्यूब की लाइट और रौशन कर रही थी।

“Please get me some water,” said Ravinder and sat up on bed. It was almost eight in the evening. The fluorescent tube was spreading light in the room.

‘दवाइयाँ ख़त्म हो चुकी हैं कल लानी पड़ेगी।’ रविन्द्र की पत्नी ने कहा। ‘ठीक है कल लेता आऊँगा।’

“Your medicines are almost over. You will have to get some tomorrow,” Ravinder’s wife said.

फ्रिज़ के ऊपर एक फाइल में लाल बहादुर अस्पताल के कई पर्चे भी रखे हुए हैं। पर्चे पर वह हर हफ़्ते की तारीख़ डलवाते हैं । दफ़्तर से आते समय उनका यही काम होता है – लंबी लाइन में लगकर अपनी दवा लेना ।

On top of the fridge there is a file with all the documents from Lal Bahadur Shastri hospital. Every week his prescription has to be renewed. On the way back from work, one of Ravinder’s jobs is to stand in the long queue and get his medicines.

Light On – Illness Off

कमरे की धूल खाती पेंट के साथ कोने में सादगी से खड़ा सटा दरवाज़ा। उसे अब्बू ने खुद बनाया था। हाँ! वह बढ़ई का ही काम करते थे। अब्बू की टी.बी. की दवा चल रही थी। मिर्ची की एक पन्नी ख़ाली कर उसमें तमाम दवाइयों को रख उसी दरवाज़े पर कील ठोक कर लटका दिया गया था। ताकि उन्हें आते-जाते दवा खाने का ख़्याल रहे। शुरू के दिनों में उसकी आँखों में भी जलन हो गई थी। वह अब्बू को दवा देने के बाद अपना हाथ धोना भूल गई थी।

The door stands alert in a dusty, paint flecked room. Abba had built that door himself. He is a carpenter. He is being treated for Tuberculosis. He has hung all his medicines in an empty packet of chillies which now hang from a nail on the wall. While in the room, he is constantly reminded to take his medicines. Once Abba’s eyes began burning. She had forgotten to wash her hands after giving him his medicines.

कुछ दवा मोहल्ला क्लिनिक, कुछ पास के डॉक्टर और कुछ दवा अब्बू के साथ अस्पताल जाकर ले आई थी। सुबह होते ही वह दरवाज़े से सटे स्विच ऑन करते ही पहली दवा और रात को स्विच ऑफ़ करते ही आख़िरी दवा उन्हें दे देती थी।

She had got some medicines from the mohalla clinic, some from a nearby doctor’s clinic and some more when she visited a hospital with Abba. Every morning she would switch on the light and give Abba his medicines and then again she would give him the night’s dose while switching off the light.

स्विच का ऑन-ऑफ़ करना दवाई देने का रूटीन बन गया था। बिजली के न होने पर कभी-कभी दवाइयाँ देने में मुझे परेशानी भी होती, तब रैपर के रंग को देखकर या पीछे काले मार्कर से लिखे सुबह शाम के देने के गोले से पहचान कर दवा देती। ख़ैर दवाइयाँ महीने भर की ही थीं। अब ख़त्म होने को है और नई दवा लाने का टाइम हो गया है।

Switching on and off the light bulb had become a part of the medical routine of Abba. Sometimes when there was no electicity, then I would have difficulty in giving Abba his medicines.

The Plastic Garland

अधूरी-सी दिख रही अपनी माँ की तस्वीर के लिए आनंद एक माला ले आया था। यह प्लास्टिक के फूलों की माला थी पर इसके साथ उसकी भावनाएँ जुड़ी हुई थीं ।

Anand had got a garland to decorate his mother, Saroopi’s picture. Even though it was a garland of plastic beads, yet his emotions were deeply connected to it.

एक महीने पहले तक जो दवाइयाँ सुबह-शाम इस्तेमाल में आती थीं, आज वही दवाइयाँ एक ओर पड़ी हैं । पहले कोरोना फिर अस्थमा ने सरुपी को घर में क़ैद कर दिया था। दवाइ‌याँ और डॉक्टर बदले गए, पर सब नाकाम रहे। एक हफ़्ते पहले उन्होंने आख़िरी साँस ली।

Even until a month ago, these medicines were so critical and were used from morning until night. Today they have been relegated to a corner. First covid and then a bout of asthma had trapped Saroopi, inside her home. Many doctors and different treatments were used. But everything failed. A week ago, she breathed her last.

रंग-बिरंगी गोलियों के पत्ते, सिरप, ट्यूब और दवाई का लिफ़ाफ़ा जहाँ हमेशा रखा रहता था, वहीं पर अब सरुपी की तस्वीर ने जगह बना ली है । दवाइयाँ, कर्फ़्यू, दवा की पर्ची भले बची हुई थी पर उन्हें सुबह-शाम इस्तेमाल करने वाला बचा न था। एक-दो महीने पहले तक जिस ज़िंदगी का सहारा यह दवाइयाँ बनी हुई थीं, आज वही दवाइयाँ बेसहारा होकर मचान के एक कोने में खामोशी के साथ पड़ी हैं ।

On the shelf, which was otherwise a place for colourful strips of pills, bottles of syrup and packets of tablets, there now stood a picture of Saroopi. While the medicines and all other paraphernalia were still there, the one who used them was no more. Until a couple of months ago, these medicines supported a life, but today they stand helpless and silent in one corner of the shelf.

The Medicines in the Corner

अना एक घरेलू औरत है। उसका शौहर चपरासी है। वो अक्सर घर से बाहर रहता है। पैसा वक़्त पर दे देता है। अना के बेटे सादिक़ को टाँग में परेशानी थी जिसकी वजह से वो ठीक से चल नहीं पाता था। अभी तो वो छोटा है लेकिन जब वो बड़ा होगा तब कैसे सँभालेगा अपने आप को, यही सोच अना अक्सर परेशान हो जाती थी। इसलिए अना ने यह बीड़ा उठाया कि चाहे कुछ भी हो उसे अपने बेटे का इलाज तो करवाना ही है। अना का बेटा टाँगों से मज़बूर ज़रूर था लेकिन वह ड्राइंग बहुत अच्छा करता था।

Ana is a homely woman. Her husband is a peon. He has to often be outside the home. However, he gives her money for the household expenses on time. Their son Sadik, has difficulty walking. He is still so young, but Ana constantly worries how he will manage once he grows up. That is why Ana has pledged to get her son treated under any circumstances. Sadik could not walk but he was an artist.

अना सरकारी अस्पताल में सादिक़ को दिखा रही थी। उसे दिखाते हुए दो साल हो गए थे। अना सादिक़ को हर दवाई ध्यान से वक़्त पर देती। इसके लिए उसने अपने कमरे के एक कोने पर खाना (लकड़ी का फट्टा) बनवाया था ताकि उसकी सभी दवाइयाँ एक जगह पर मौजूद रहे। अना और सादिक़ का कमरा यूँ तो ज़्यादा बड़ा नहीं था लेकिन उस कमरे में खिड़की से हवा आती थी। दवाई पीते-पीते सादिक़ दवा का इतना आदी हो गया कि खुशबू से पहचान लेता कि उसे कौन-सी दवा दी जा रही है? रात को दवाई पिए बग़ैर वह सोता नहीं था। इतने दवा खाने के बाद भी सादिक़ की टाँगें बेजान ही थी। सादिक़ और खुद को टेंशन फ्री रखने के लिए अना टीवी का सहारा लेती थी। आधे समय टीवी और बाकी समय ड्राइंग और दवाइयों के साथ बिताने के बाद सादिक़ पुरसुकून नींद में सो जाता। और, अना रातभर करवटें बदलते हुए सोचती रहती कि काश उसके पास भी कोई ऐसी दवा होती जिसे खाकर वो बेफ़िक्र होकर सो रहती।

Ana had been taking Sadik to the government hospital for treatment for the past two years. She would give him his medicine on time and with a lot of care. She had designated a corner of a wooden shelf specially for his medicines. Ana and Sadik lived in a small room which had a window through which they would get a fresh breeze. Sadik had become so used to his medicines, that he could recognise them just from their fragrance. He would not go to sleep without taking his medicines. Inspite of taking so many medicines, Sadik’s limbs were lifeless. He would watch TV at night to keep himself tension free. Between the TV and painting, Sadik would manage to keep his mind occupied and would sleep soundly at night. Ana would twist and turn all night and wonder if there was any medicine which would take away her worries and give her a night of peaceful rest.

Medicine Strips on a Shelf

बारह साल का हर्षित अभी नवीं कक्षा की परीक्षा देकर छुट्टियाँ मना रहा है। वह आजकल घर का ज़िम्मेदार बेटा बन गया है। पापा और मम्मी दोनों काम पर चले जाते हैं तो जितना छोटा-मोटा काम बच रहता है, वह उठकर कर देता है।
बात करते-करते वह दरवाज़े के साथ बनी खिड़की के पास वाली स्लैब पर बिखरे पत्तों को समेटने लगा। स्लैब पर कई तरह का सामान रखा हुआ है – मम्मी की चूड़ियाँ, जो उनके कपड़ों के रंग से मैच करती हुई हैं, सिलाई का डब्बा जिसके धागे से मम्मी लोगों के फटे-पुराने कपड़े को सील देती है, पापा के फ़ोन का कवर और उसी के पास रखा उनका काँच का गिलास भी जिससे रोज़ाना वे पानी पीते हैं, और दवा जो उन्हें खानी होती हैं।

Twelve-year-old Harshit’s school holidays have started. His class nine examinations are over now. As he grows older, he has become a responsible son of the family. After both his parents leave for work, he finishes the small household chores left by them. While chatting, he begins collecting the medicine strips spread out on the shelf. There are many things on the shelf- mummy’s glass bangles which match the colour of her clothes, the needlework box which she uses while repairing the torn clothes of her family, Papa’s phone cover and his water glass along with all his medicines.

देखो! पापा कैसे सारी दवाओं को स्लैब पर फैलाकर चले गए हैं! हर्षित ने हाथ से इशारा करते हुए कहा। पापा दवाई को स्लैब पर ऐसे खोलते थें, ताकि उसकी गंध बिस्तर पर फैल ना जाए। उन्होंने बताया था कि दवा के खुलते ही घर में एक गलते हुए लोहे-सी गंध घुल जाती है।

Look! How papa has spread out all his medicines on the shelf. He showed the mess with his hands. Papa removed the medicines from their wrapper in such a way, that its smell would not spread through the room. He would say that the medicines smell like rusting iron.

इसकी गंध (हबक) नाक से मुँह तक चढ़ने लगती है और तब मन यही करता है इसे जल्दी से पन्नी में बंद कर दूँ। ये गंध ऐसी होती है, जिससे किसी को भी उल्टी हो जाए । पापा को ये गंध बर्दाश्त नहीं होता, जबकि वो कई सालों से इस दवा को खाते चले आ रहे हैं। उन्हें दिमाग़ी दिक्क़त है। वो खड़े-खड़े बेहोश हो जाते हैं। डॉक्टर ने तो दिमाग़ का बुखार बताया था। कई बार वे बच्चों की तरह बातें करने लग जाते, कभी बूढ़ों की तरह भी। ये सब काफ़ी दिनों से चला आ रहा है अब धीरे-धीरे उनमें सुधार दिखने लगा है। इलाज का असर तो है ही।

The smell tends travels from the nose into the mouth. We would try and quickly wrap it in a plastic packet before it spread. The smell is so strong that it can make anyone throw up. Papa isn’t able to stand this smell even though he has been taking this medication for many years now. He has some problems in his brain. He sometimes faints while standing. The doctor had said that he had brain fever. Some days he would start speaking like a child while on others, he would behave like an old man. The treatment has slowly started showing a positive impact and Papa has been feeling better.

लेकिन इस सबसे उनका जी तेज़ी से घबड़ाने लगता। सर्दियों में भी पंखा चलाना पड़ता और गर्मियों में कूलर की रफ़्तार तेज़ करनी पड़ती ताकि जल्दी से दवा की महक बाहर निकल सके। पहले तो दवाएँ उनके गले से अंदर ही नहीं जाती थीं। नाक मानो गंध से सड़ गई हों। उस वक़्त उनका मुँह तिरछा हो जाता था। लेकिन अब तो दवाई कम हो गई हैं, पहले तो पापा की ऐसी हालत देख मम्मी भी रो पड़ती थीं।

But all these medicines make him uneasy and nauseous. We would have to switch on the fan even in winters and in summers, we ran the air cooler to drive away the smell of the medicines. Papa would find it difficult to swallow his medicines and would contort his face while taking them. Earlier, Mummy would be in tears seeing Papa like this, but now she feels relieved that he is getting better.

The Dwindling Medicines

टीवी ख़राब होते ही नीतू अपनी दवाइयाँ टाइम पर लेने लगी थी। पहले जब रात को टीवी चलता तो वह टीवी देखने में मग्न होने के कारण दवाइयों का समय आगे-पीछे कर दिया करती। ट्रंक पर चादर बिछाकर टीवी के बग़ल में रखी यह दवाइयाँ घर के किसी एक सदस्य की तो थी नहीं! डिस्पेंसरी और मेडिकल स्टोर से लाकर इकठ्ठा की गई इन दवाइयों को घर के सभी लोग इस्तेमाल करते थे। इनमें कुछ ही दवाइयाँ इस्तेमाल होतीं बाकी दवाइयाँ आगे काम आएँगी, यह सोच कर रख ली जाती थी। दवाई लेते वक़्त पानी का गिलास ढूँढ़ना न पड़े इसलिए पानी का एक गिलास टिफ़िन के ढक्कन से ढका हुआ रखा रहता था। टीवी के ठीक पीछे एक स्विचबोर्ड था। उससे घर के कई कनेक्शंस जुड़े हुए थे । घर का यह कोना अब टीवी से ज़्यादा दवाइयों के लिए जाना जाने लगा था। नीतू सुबह जल्दी काम के लिए निकलती और शाम को देर से लौटती। इसी थकान भरे रुटीन ने नीतू के शरीर में खून की कमी और उससे हुई कमजोरी जैसी शिकायतों को जन्म दिया था। हर शाम दवाई लेते वक़्त वह दवाइयों को कम होता देख खुश होती कि अब उसे अपनी तक़लीफों से जल्द निज़ात मिलेगी।

Ever since the television stopped working, Neetu had begun taking her medicines on time. Earlier she would be so lost in watching TV that she would always bungle up the timings. A sheet has been spread on an old trunk and the TV has been kept on it alongside all the medicines. They don’t belong to any single person in the family though. They have been collected from various medical stores and the local dispensary with great care. They are being collected for a rainy day. A glass of water is also kept strategically, covered with the lid of a lost tiffin box. Just behind the TV, is a switchboard to which a network of connections are fitted. This corner had been identified as the medicine corner of the house. Neetu would leave early for work and come back late. It was this hectic schedule which had made her anaemic and weak. Every evening, she would look at the dwindling medicines and feel that perhaps that was an indication that she was getting better.

Bed inside a home. Photo: Ankur Writers Collective

बेड

Beds

दिल्ली के कामगार बस्तियों में घर अक्सर छोटे छोटे होते हैं। इन हालातों मे अगर घर का कोई व्यक्ति बीमार पड़ जाए तो उसका बिस्तर कहाँ लगता है? ख़ासकर, अगर उसे कोई लम्बी बीमारी हुई हो तो? कैसे होता है उसका बिस्तर? क्या उस तक सूरज की रौशनी पहुँचती है? कहाँ रखी जाती है उसकी दवाइयाँ?

Homes are often very small in the working-class settlements of Delhi. Under such circumstances if a family member falls ill then where is his bed placed in the home space? Especially if the person has some kind of a long-term illness? What is their bed like? Does sun light reach their corner? Where are their medicines placed?

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Document and medicines. Photo: N.N. © 2023 N.N.

दस्तावेज़

Documents

घरों में ज़रूरी कागज़ात रखने की भी बड़ी अनोखी दास्तान होती है। कभी तो उन्हें चूहों और आग से संभलकर ट्रंक में रखा जाता है। पर अक्सर हम उन्हें फ्रिज के ऊपर, या किसी ताक पर रख छोड़ते हैं। पर हम जो भी जगह चुनें, हर मोड़ पर हमे एक दिलचस्प कहानी मिल जाती है।

Where do we keep important documents in our homes, especially when they are small and in the resettlement areas? Sometimes we keep them in metal trunks so that they are protected from rats and fires. But often we leave them on top of the refrigerator or some randome shelf. However whichever place we might chose, at each bend you will find an interesting story.

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