Hands_Khichripur. 2003. Photo: Kavita Dasgupta

अम्मा की हरारत

Amma’s Jitters

ख़र्र… ख़र्र… ख़र्र… पन्नी खुली।
ख़र्र ख़र्र ख़र्र… ख़र्र ख़र्र… लगा जैसे कोई पन्नी में कुछ ढूँढ़ रहा हो।

Kharr… kharr… kharr… the plastic bag was opened.
Kharr kharr kharr… kharr kharr… it sounded like someone was looking for something in the plastic bag.

ख़र्रर्रर…पन्नी को गुस्से से पलट दिया गया।
‘अरे इसी में तो रखा था, कहाँ चला गया।’
ख़र्र ख़र्र ख़र्र ख़र्र ख़र्र… एक बार फिर से पन्नी में कुछ खोजने की आवाज़ आई।
‘पता नहीं मेरे घर वाले इस पन्नी को छूते ही क्यों हैं!’
एक बूढी औरत अपने थरथराते हाथों से पॉलीथिन में पर्ची ढूँढ़ने लगी। शायद, उसका नंबर भी आने वाला है। उसकी बेचैनी है कि बढ़ती ही जा रही है।

Kharrrr… the plastic bag was turned with anger.
“Arrey! This is where I had kept it. Where did it go?”
Kharr kharr kharr kharr kharr…. once again, the plastic bag was rummaged.
“I don’t know why my family touches my bag!”
With quivering hands, an old woman started looking for her papers in her bag. Perhaps it would be her turn soon. She was getting even more jittery as time went by.

अभी लाइन ज़्यादा लंबी नहीं हुई है। लाइन में लगे लोगों के हाथों में लटकते थैले और पन्नियाँ हवा में झूल रही हैं। सफ़ेद और हरे रंग की ये पन्नियाँ देखकर लगता है कि वो आपस में बोल बतिया रही हैं। इन पन्नियों में किसी का रंग उतरा हुआ है तो किसी का सही-सलामत भी है। कुछ पन्नियों पर लिखे अक्षर मिट चले हैं। जैसे ही कोई लाइन से आगे की ओर खिसकता तो पीछे वाला व्यक्ति दूसरे को आगे बढ़ने को कहता। इस लाइन में हर शख़्स पन्नी को कस के पकड़े हुए था। कुछ लोग धूप से बचने के लिए पर्ची वाली पन्नी को ही सिर पर रखे हुए थे । इस लाइन से दवा वाली खिड़की थोड़ी दूरी पर थी। डिस्पेंसरी में काम करने वाले कई कर्मचारी यहाँ से वहाँ घूम रहे थे। बरामदों में लोगों की आवाज़ें कम और कमरों से पंखों की आवाज़ें ज़्यादा आ रही थी। इस क्लीनिक में दवा तो डिब्बियों में सुरक्षित थी और सीरप शीशी में, लेकिन उनकी महक आपस में घुल-मिलकर हवा में तैर रही थी।

The queue wasn’t very long. As people waited, the packets and bags in their hands were swinging in the wind. The green and white bags seemed to be having a conversation. The colours of some bags had faded, while others were still bright. Some of the lettering on the bags were becoming dull. As the person in front moved up, those behind would urge the rest to hustle forward. Everyone in the queue clutched onto their bags tightly. Some had put their bags on their head to save them from the harsh sunlight. The window where medicines were being handed out was a little further away. Many staff members were moving around busily. The spinning sounds of the fans overtook those being made by the people. All the tablets had been kept securely in boxes and the syrups in bottles, but the threads of smell had entwined and were floating through the dispensary.

The Talking Bags_Dakshinpuri 2002. Photo: Ankur Writers Collective

अक्सर इन प्लास्टिक की पन्नियों में लोग कागज़, प्रिस्क्रिप्शन इत्यादी लेकर जातें हैं।

Plastic bags used for carrying medical papers like prescriptions etc.
The Talking Bags_Dakshinpuri 2002. Photo: Ankur Writers Collective
ऐसा लगता है मनो की ये पन्नियां एक दुसरे से बातें कर रहीं हों।
It seems as if these bags are having a conversation.
‘आपको बोला है न कि पहले तारीख़ डलवाकर लाइए।’ डिस्पेंसरी की खिड़की से एक आदमी ने ज़ोर देकर कहा।

“Haven’t I told you to first get your documents stamped with today’s date!” A man from the dispensary window screamed at those gathered outside.

Document and medicines. Photo: Ankur Writers Collective
बाहर खड़े सभी अपने-अपने पर्ची में तारीख़ देखने लगे। लाइन में ज़्यादातर अधेड़ उम्र के या उम्रदराज़ व्यक्ति ही खड़े दिखाई दे रहे थे। लगता था मोहल्ले की ये डिस्पेंसरियाँ सिर्फ़ बुज़ुर्ग लोगों के लिए ही बनी हैं। शायद उनके पास अपनी लंबी बीमारी का इलाज़ कराने को पैसे नहीं होते।

All those queued outside began looking for the date on their individual tickets. Most people standing in the queue were aged. It seemed as if the dispensary in this location had been built especially for the elderly. Perhaps that was because they often didn’t have money for treatment of their chronic ailments.

डॉक्टर के कमरे से ट्रिन-ट्रिन की आवाज़ आते ही लोगों में जान आ जाती। कर्मचारी भी हरकत में आ जाते।

Trin trin… the bell rang in the doctor’s room. The waiting patients and the staff members, both became alert.

रामवती अम्मा और मोहल्ला क्लिनिक
Ramwati Amma & the Mohalla Clinic
सुबह जो बूढ़ी गेट पर पन्नी में कुछ खोज रही थी, वो एक बार फिर डिस्पेंसरी में घुसी। उसके हाथ–पैर काँप रहे थे। पन्नी की आवाज़ साफ़ बता रही थी कि उसको दवा लेने की कितनी जल्दी है। मानो बेजुबान पन्नी की आवाज़ से उसके हाल का पता चल रहा हो। उसके पास आधारकार्ड की कॉपी भी नहीं थी। बिना आधारकार्ड देखे पर्ची भी तो नहीं बनती। थोड़ी साँस लेने के लिए जैसे ही वो बैठी तो कर्मचारी ने कहा, ‘अम्मा! जाओ पहले पर्ची बनवा लो।’

The old woman sifting around in her bag this morning entered the dispensary again. Her arms and legs were shaking. The quivering sounds of her plastic bags expressed how urgently she needed her medicines. The voiceless bag seemed to speak for the lady. She did not even have a copy of her adhar card. Without one it was difficult to get a ticket for the dispensary. As soon as she sat down to catch her breath, a staff member told her, “Amma, go get your tickets made.”

‘अरे! जा रही हूँ भैया, थक गई हूँ, साँस तो लेने दो।’

“Arrey! I am going brother. I am tired. Let me catch my breath.”

वो अपने घुटनों पर हाथ रखती हुई खड़ी हुई और सीधे पर्ची बनाने वाले कमरे के अंदर चली गई।

She raised herself by putting both her hands on her knees and walked into the ticket room.

‘अरे अम्मा, कहाँ घुसी आ रही हो। बाहर से आओ।’

“Arrey Son! I am too exhausted. You stamp my ticket here. I can’t walk anymore.”

‘यहाँ से नहीं होगा, बाहर से ही आओ।’

“That’s not possible, Amma. You have to stand in the queue.”

अपनी पन्नी को ज़मीन पर मारती हुई अम्मा ने कहा, ‘लो, मैं नहीं जा रही। बूढ़ी औरत पर ज़रा भी तरस नहीं आती, तुझे। पंद्रह नंबर से भागती हुई आ रही हूँ। मैं थक गई हूँ…। यहाँ से पर्ची दे रहा है तो दे दे, नहीं तो मैं यहीं तुम्हारे कमरे में बैठी रहूँगी।’

Amma threw her plastic bag on the floor. “I can’t go anywhere. Have mercy on this old woman. I have walked all the way from room fifteen. I am so exhausted… Stamp my ticket here or I will just sit here for the rest of the day.”

स्थानीय डिस्पेंसरी बनाम मोहल्ला क्लिनिक
Local Dispensary vs. the Mohalla Clinic
‘अरी अम्मा, ला अपनी पर्ची।’ पर्ची पर उसने तारीख़ डाल दी।

“Arrey Amma! Give me your ticket,” and he stamped her ticket.

पर्ची ले बूढ़ी अम्मा सीधे डॉक्टर के कमरे में चली गई।

Amma took her ticket and went straight to the doctor’s room.

‘देखो डॉक्टर साहब, मैंने आपको पहले ही अपनी तकलीफ़ बता दी थी, पर आपने जो मुझे दवा दी, उससे ये दाने हो गए। आपने कहा था कि ठीक हो जाऊँगी और अब देखो मेरा यह हाल…।’ अम्मा पूरे गुस्से में थी।

“Look doctor sahib, I have already told you my symptoms but after taking your medicines, I have come out in these rashes. You had assured me that I will get well. But look at me now…” Amma was very angry.

The Talking Bags_Dakshinpuri 2002. Photo: Ankur Writers Collective
‘क्या हो गया ?’

“What has happened?”

‘ये देखो, पूरे शरीर पर दाने हो गए हैं।’ अम्मा ने अपना हाथ उन्हें दिखाया।

“Look, I have rashes all over my body,” said Amma, stretching out both her arms.

‘परहेज न कर कुछ उल्टा-सीधा खा लिया होगा।’

“You must have eaten something which I told you not too.”

‘ये भी ग़लती हमारी है!’ अम्मा ने फिर गुस्से में उनसे कहा।

“These rashes are also my fault!” Amma said furiously.

डॉक्टर साहब चुप हो गए। अम्मा थकी हुई थीं और ऊपर से शरीर पर होने वाले दानों से परेशान भी। वो आज किसी को नहीं छोड़ने वाली थी। वो फिर से बोली, ‘और ये दवा देने वाला! इससे मैंने पूछा कि दवा कैसे खानी है तो बोला एक बार बता दिया है दोबारा नहीं बताऊँगा। अरे! मैं बुढ़िया भूल गई, ठीक से सुन नहीं पाती, तो दोबारा बताने में क्या परेशानी थी उसको।’

Doctor sahib was quiet. Amma was tired and worried because of her rashes. She was not going to spare anyone today. “That man who gives medicines, I asked him how to take the tablets. The said that I have told you once and can’t repeat instructions. Arrey! I am an old woman, I forget, I can’t hear properly. Why can’t he explain again?”

तब डॉक्टर ने उन्हें अपने सामने बैठा कर पूछा, ‘दिखाओ अम्मा, क्या हुआ?’

The doctor made her sit close and asked, “Amma show me properly. What has happened to you?”

Medicines at Local Clinic. Photo: Ankur Writers Collective.
डॉक्टर अपने मरीजों को खुराक समझाने में बहुत मेहनत करते हैं। वे उन्हें रंग-बिरंगे कोड देते हैं या समय बताने के लिए सूर्य और चंद्रमा का चित्र बनाते हैं।

Doctors take great pains in explaining the dosage to their patients. Colour coding them or drawing the sun & moon to indicate timings.

Medicine box in a home. Photo: Ankur Writers Collective
सुई – धागे की डब्बी में सावधानी से रखीं दवाएं।
Medicines stored carefully in a needle-work box.
‘मैं तीन दिनों से इन दानों की वजह से सो नहीं पा रही हूँ।’

“I haven’t slept properly for the last three days because of these rashes.”

डॉक्टर ने अम्मा को ठीक से देखा और दवा लिखी। और, ख़ुद उन्हें दवा खाने के बारे में विस्तार से समझाया।

The doctor wrote out her prescription after examining her properly. Then he patiently explained how to take her medication in great detail.

डिस्पेंसरी के स्टाफ़ अम्मा को दवा वाले के पास ले गए। दवा वाले ने भी दवा देकर उन्हें फिर से दवा खाने के बारे में बताया।

A staff member then accompanied Amma to the window where medicines were being handed out, and again explained everything to her patiently.